Saturday, 3 August 2013

बस यूँ ही



!!!!!बस यूँ ही !!!!!

कल किसी मित्र ने प्रेम की अभिव्यक्ति पर अपनी टिपण्णी देते हुए लिखा कि ' बड़ा बकवास लिखा और कुछ नया लिखये ' .पढ़कर बुरा तो अवश्य लगा . फिर भी सोच कर कुछ यह नया लिखने का प्रयास किया परन्तु प्रेम की अभिव्यक्ति से मुक्त नहीं हो पाया . आप भी कुछ राह सुझाये !



हुस्न और इश्क बहुत हुआ पर तन्हाई की बस्ती में रहते हम अकेले हैं
रुखी सूखी खा पीकर टूटी खाट पे सो जाये  जो हम वो मस्त अलबेले हैं

गुलों की खुशबू , मस्त पवन ,झूमते भंवरे , रूठती रमणी से लेना क्या
दिन भर खटके, बू से भीगके,जिस्म तुडाके देता मालिक तब दो धेले हैं

क्या ज़ज्बात, क्या खयालात,क्या अरमान,क्या तिश्नगी और बेवफाई
जल्दी उठना, धूप में जलके चांदनी ओढ़ना  बस यूँ ही जीवन को ठेले हैं

Ramkishore Upadhyay








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