Thursday 29 August 2013

टूट रहा है ,,,

ये टूट रहा हैं रोज
वज़ूद मेरा 
वो बढ़ रहा हैं रोज 
दर्द मेरा 

मैं तेरे कंधे पर अपना सर भी नहीं रख सकता 
जिंदा हूँ 
लोग क्या कहेंगे सोचकर 
इस मोड़ पर आवारा नाम भी नहीं रख सकता

तू गर ख्वाबो में ही आ जाये
हो सकता हैं
तेरा कान्धा तो ना मिले
मेरे सर को
शायद 

चार कंधे ही मिल जाये

रामकिशोर उपाध्याय

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