Tuesday 19 November 2013

मैं निराश नहीं हूँ
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अचानक
क्या हुआ
जो ह्रदय मैंने आपसे लिया था 
वह
ग्लेशियर पर पड़े
बर्फ सा तो नहीं था
वह तो स्पंदित था
वह तो जीवंत था
वह तो मेरी हर गर्म सांस से
क्रीड़ा में तल्लीन हो जाता
एक उन्मुक्त परिंदा था
वह तो
मेरी हर आहट  पर
मुझे देखने द्वार तक दौड़ा आता था
मेरे ह्रदय के निकट बैठ
हर दिन नये गीत गुनगुनाता
नित नूतन स्वप्न सजाता
हर रात मिलन की बाट जोहता
बेरोकटोक बाते करता मुझसे
कई सवाल करता था
जीने के
प्रत्येक क्षण
उत्सव से पोषित मस्त
धमनियों में  उदात्त भावों से
अंग-अंग में अविराम अद्भुत  स्फुरण करता
वो इतना निष्ठुर
वो इतना क्लांत
वो इतना शांत
तो कदापि नहीं था
यह वह  ह्रदय तो नहीं
शायद दूरियां से त्रस्त
किसी मांस का लोथड़ा हो
परन्तु मेरा प्रयास रहेगा
यह बर्फ आगामी बसंत से पूर्व
पिघल जाये
और यह ह्रदय
फिर से मेरे लिए
धड़कने लगे..
जीवन में ऋतु-चक्र तो आते रहते हैं
और कम से कम इस स्थिति से
मैं
निराश नहीं हूँ..... 

रामकिशोर उपाध्याय



2 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं इस कविता में .. अच्छी कविता ..

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  2. नीरज कुमार जी , सराहना के लिए धन्यवाद और आभार

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