Tuesday 12 November 2013



















गुलाब
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बहुत प्रयास किया
कि कुछ लिख दूँ
शब्द नहीं मिले ..
पुस्तकें देखी
कुछ शब्द उठाये
कुछ को बिछौना बनाया
कुछ को तकिया
कुछ चादर बनकर फ़ैल गए
फिर भी कुछ बचे रह गए
यह सोचकर उन्हें उपयोग नहीं किया
कि सुबह नाश्ते पर देखेंगे ...
ये बचे शब्द रोने लगे
मैंने कहा रोओ मत ..
जाओ मुक्त हो जाओ
और
तितली बन जाना
कुछ भ्रमर बन जाना
या फिर
कल किसी का श्रंगार बन
जीवन महका देना ..
सुबह ..
देखा तो गुलाब खिले थे
मेरे मन आंगन में .....

रामकिशोर उपाध्याय

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