क्यों ?
क्यों गति अवरुद्ध हैं
इन बहकते कदमों की .....
क्यों जुम्बिश नहीं हैं
इन लरजते होठों पर ......
क्यों कोई जल नहीं रहा हैं
इन दहकती सांसों से ........
क्यों कशिश कम हैं
इन बोलती आँखों में .....
क्यों आनंद-राग का आलाप नहीं
हैं
इस पूरी भाव-भंगिमा में .............
क्यों तार झंकृत नहीं हैं
ह्रदय-वीणा के.........
ये न तो उत्स का क्षण हैं
और अस्त का भी नहीं
यह एक जीवन काया हैं ,,,,,,,
जो एक पल की माया हैं,,,,,,,,,,,
यह राग है सृष्टि का ,,,,,,
जिसको
एक शोला भी चाहिए
और एक चिंगारी भी.
रामकिशोर उपाध्याय
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