ये कैसी अजीब कशमकश है उल्फत में
दिल के कहे को दिमाग मानता नहीं ,
वो अक्सर हमसे सवाल करते रहते है
सुनते हो क्यों उसकी जो धड़कता नहीं .
तमन्नाओं के मेले में हम तो अकेले है
कर रहे है आरजू उसकी जो सुनता नहीं
ढूंढती है आंखे उस महबूब-ए-खास को
गुम हुआ जो उजाले में वो मिलता नहीं
लहरे भी लौट जाती है एक वक़्त के बाद
नादाँ मौजों को साहिल कभी मिलता नहीं
राम किशोर उपाध्याय
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (22-05-2013) के कितनी कटुता लिखे .......हर तरफ बबाल ही बबाल --- बुधवारीय चर्चा -1252 पर भी होगी!
सादर...!
शशि जी , आभार
Deleteतमन्नाओं के मेले में हम तो अकेले है
ReplyDeleteकर रहे है आरजू उसकी जो सुनता नहीं ..बहुत खूब!
कविता जी , धन्यवाद
Deleteबिना शीर्षक की कविता
ReplyDeleteलगे दिल कहीं खो गया है
Dhanyvad, Vibhaji
Deleteधन्यवाद , विभा जी
ReplyDelete