Saturday, 27 April 2013


ख़ुशी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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ख़ुशी, कभी दबे पांव  खुली खिड़की से आती
और शोर करती बंद  दरवाजे से चली जाती

ख़ुशी ,कभी बयार बनके मन महका  जाती
और  भुजंग को चन्दन से दूर भगा जाती

ख़ुशी ,कभी सीप के मुख में गिर मोती बन जाती
और गरम तवे पर गिर जलकर भाप बन जाती

ख़ुशी ,कभी सागर की लहरे बन तन  भिगो जाती
और गर्मी में लू बनके बदन का पानी सुखा जाती   

ख़ुशी ,कभी बच्चो की किलकारी से आंगन सजा जाती
और बच्चो  के कंधे पर सवार होकर अर्थी बन जाती

ख़ुशी ,कभी सफलता बन गर्व से सीना फुला जाती
और शिखर से गिरने पर बुलबुला  सा   फूट जाती

ख़ुशी ,कभी बिना  पांव परबत पार करा जाती
और सपाट सड़क पर कई ठोकर खिला जाती

ख़ुशी, कभी प्रेमिका बन सुनहरे सपने दिखा जाती 
और पत्नी बन के यथार्थ से जूझना सिखा जाती

ख़ुशी, कभी भी हो, कही भी हो,  ख़ुशी ही कही जाती
और ख़ुशी गम  को आंचल में छिपा  ख़ुश कर जाती

राम किशोर उपाध्याय
27-4-2013

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