Thursday, 11 April 2013

गुनाह का अक्स

उठा है फिर से आज दर्द का तूफान सोये हुए घावों से   
आयी  है फिर से आज घुंघरू की सदां खोये हुए पावों  से

चांदनी में झुलसते ही रहे वो मेरे मासूम से जज्बात
मिला है फिर से आज मोहब्बत का पैगाम खुश्क लबों से     

यहाँ डगमगाती  रही कश्ती बेख़ौफ़ उस समंदर में 
आया है फिर से आज साहिल का वादा उन नाखुदाओं से 

मिरा  दिल डूबने लगा और रूह पनाह मांगने लगी 
उभरा है फिर से आज  गुनाह  का अक्स उन निगाहों से  

राम किशोर उपाध्याय
11.04.2013

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