Thursday, 12 September 2013

ऐसे कैसे चले जाते !
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इस भरी दुनिया से हम ऐसे कैसे चले जाते,
के तुम्हे दुल्हन बनाये बिना कैसे चले जाते।

जिन्दगी की मोसिकी में हैं कई रंग और राग ,
के कोई नगमा सुनाये बिना कैसे चले जाते।

शाम डूबती रही बस तनहाई के आलम में ,
के इसका सोग मनाये बिना कैसे चले जाते।

तुम आये और चले भी गए बड़ी बेरुखी से,
के हम तुमको मनाये बिना कैसे चले जाते।

जब रूह हो रही है फ़ना, लगा इश्क का रोग,
के फिर इलाज कराये बिना कैसे चले जाते।

रामकिशोर उपाध्याय

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