Thursday, 12 September 2013


मुक्त ---

जीतने की जिद में हम बाजी हार गए, 
और तुम फ़िक्र में ये दिल ही हार गए। 

सरहाने रख लिए तुम्हारे ख़त सारे,
शायद सुर्ख आँखों में नींद आ जाये।

के लहरों को हम देखते रह गए ,
बैठे थे जैसे बस बैठे ही रह गए।

बाते करते वे गीता कुरआन की,
के हम तो नूर देखते ही रह गए।




बड़ी तमन्ना थी कि सलवटें गिने बिस्तर की एक सुबह, 
उफ़ ये अफसाना कागज़ की सलवटों में छुपके रह गया । 

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