Wednesday, 16 November 2011

'मेरे मशहूर होने तक'

मेरा यह एक प्रयास मात्र हैं. सुधिजन , कृपया इसे ठीक कर मार्गदर्शन करे.

'मेरे   मशहूर होने तक'

बुझ  जाने  दो शम्मा को  अब सहर होने तक
काफी है उजाले यादो के दफ़न  होने तक.

 या रब  शब और सहर में फासले क्यूँ है.
आते हैं  कई सैलाब आखों के बस कोने  तक.

मिटटी के घरोंदे के मानिंद मेंरे  कुछ ख्याब
टूट जाते है अक्सर  तेरे करीब आने तक

सोच का सिलसिला बादस्तूर रहा तन्हाई में
सूरत भी  बदलती गयी  मेरे परेशां होने तक

नहीं  है गिला  मेरी गुमनाम पहचान  पर अब
नज़रे बदलती रही तेरी  मेरे   मशहूर होने तक.

१६.११.२०११

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