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एक ग़ज़ल कुछ यूँ ही
कसमें उठाते हैं कि हर घर हो रोशन
दिए अपने ही घर उठा लाते हैं लोग
चिलचिलाती धूप में दम तोडती जिंदगी
ठंडी छाँव को घर में छिपा लेते हैं लोग
जीने के सबक आज मिलते ही हैं कहाँ
मौत बेचते फिरते हैं सफ़ेद पोश लोग
मंजिल हरेक को मयस्सर हो ही कहाँ
अब राहों को अक्सर घुमा देते हैं लोग
जिद है कि मंजिल पर पहुंचेगे जरुर
मुखालफ़त करते फिरते हैं कुछ लोग.
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वाह लाजवाब सृजन जय माँ शारदे========
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