Thursday, 15 December 2011

ख़ुशी












पाने को आदमी, ख़ुशी के पल,
छलता जाता खुद को हर पल .


कभी पिघलता जिस्म की गर्मी से
कभी जमता रिश्तो की बेरुखी से
घुटकर रह जाता कभी अचल .
छलता जाता खुद को हर पल .



कभी आती धुंध को  ही सच  मानता 
कभी जाती  गंध  को समेटना चाहता
गिरता कभी टूटते तारे सा विकल .
छलता जाता खुद को हर पल .



कभी झरने  का  पानी बन  बहता 
कभी जंगल  की  आग बन जलता
भ्रम में उलझ रह जाता अचल .
छलता जाता खुद को हर पल .



कभी आशा में  विचलित हो जाता 
कभी निराशा में प्रेम गीत भी गाता
देख  शोख अदाएं  जाता मचल .
छलता जाता खुद को हर पल .




कभी सिक्कों के लिए दानव बनता 
कभी सिक्का बन भट्टी में गलता 
माया नगरी में  लुटता पल पल.
छलता जाता खुद को हर पल .


एक अमूर्त या  मूर्त है ख़ुशी
एक  टुकड़ा  या पूर्ण है ख़ुशी
उतर  भंवर में  गर है  सबल.
छलता जाता खुद को हर पल .




अर्थ, काम या मोक्ष है ख़ुशी
भीतर  छलकी पड़ी है ख़ुशी
ठगेगी वरना ख़ुशी, तू बस चल .
पाने को आदमी, ख़ुशी के पल,
छलता जाता खुद को हर पल .

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