Tuesday, 20 December 2011

"नव वर्ष की अभिलाषा "



न हो   हताश
असीम नभ के अदृश्य छोर तक
पाँखे न पसार   पाने पर,

न हो निराश 
धरा के सुदूर कोनों तक
डग न भर पाने पर ,

न हो प्यास
मेघ की नवोदित बूंदों के मन -चातक के
मुख  न पड़ पाने पर ,

न हो उदास
समुद्र  के  उत्थित प्रहारों के
तट न बंध पाने पर

सिक्त हो प्रभु !
जीवन अमृत  से   घट
खुले नित नए
संभावनाओं  के पट

हो जीवन-दृष्टि विस्तृत 
जो अछूती  संवेदनाओं को करे  स्पर्श 
चखूँ नित आनंद -अमृत
प्रभु ! इस  नव वर्ष . 

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