Thursday, 1 December 2011

मन चातक की पीर




उमड़-घुमड़ कर छायी बदली,
काली-काली ,पर रीती नीर  .
तरड- तरड कर चटकी धरती,
कौन सुनेगा मन चातक की पीर.
कौन सुनेगा मन चातक की पीर


पिया मिलन को चली हंसिनी 
उभरा  यौवन ,नयन अधीर 
पता पूछती फिर भी भटकी 
कहाँ मिलेगा प्यासी  को नीर .
कौन सुनेगा मन चातक की पीर.


लगी लगन जब एक ही और
कौन है राँझा, कौन है हीर
गान  में लिपटी प्रेम की पीड़ा
कौन कहेगा  थी वो एक मीर
कौन सुनेगा मन चातक की पीर.





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