साहिल शांत
लहरे अनंत
---टकराहट प्रतिपल बढती ही जाये
फिर भी साहिल हटता ही नहीं
----बना होगा फौलाद का
सोचा दूर के मुसाफिर ने
परन्तु
निकट आकर देखा तो थे
---रेत के कुछ कण
कितने बिखरे-बिखरे
कितने अलग-अलग
पर
--- मकसद में पूरे कामयाब
. कविता का जन्म मद्रास ( अब चेन्नई) के मरीना बीच पर वर्ष १९८६ में हुआ. कादम्बिनी में भी प्रकाशित हुई
इस कविता में एकता का बल दिखाया गया है | जीवन के थपेड़ों से लड़ते हुए हमे इसी तरह एकता एवं धैर्य का परिचय देना चाहिये | बहुत सुंदर कबिता लिखने के लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteDHANYAVAAD.PRERNA TO APSE HI MILTI HAIN.
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