Friday, 21 October 2011

' अपने-अपने यथार्थ '

'    अपने-अपने यथार्थ  '

बाबा ! सितारे जमीं पर लाऊंगा 
चाँद को खिलौना बनाऊंगा
आयेंगी जब ठण्ड 
सूरज पर हाथ सकेंगे------
बाबा! आस्मां की तख्ती पर
देवदार की लम्बी कलम से 
नदी के नीले जल की सियाही से
जीवन -संघर्ष की गाथा लिखूंगा  ------
बेटा! देखते हो खूंटी पर टंगा वह मैला कुरता
उसकी बाजु पर  लगी वो कई पैबंद
मेरे पायजामे पर पड़ी बेतरतीब सिलवटे
झुर्रियो से ग्लोब बने मेरे चेहरे को
भीतर धंसी ये दो आँखे 
पहचान कर लो अपने यथार्थ की ---------------
मै थोड़े तिनके एकत्र कर लूँ
तुम आग मांग लाओ पड़ोस से
आज हम आलू  भूनेंगे 
जो मैंने चुराए है खुदे खेत से कल ही रात  
और अपने हाथ सकेंगे------------------------

20.10.2011

1 comment:

  1. Aapaki ye kabita Premchand ki kahani kafan ki yaad dila gayi ! kabita jivan ke yatharth ke kafi karib hai aur apane udeshya mai safal rahi hai ! Jaibind.

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