प्रिय मित्रों,
इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपनी रचनाओं का परिचय आपको करूँगा और आपके सुझाव व
आलोचनाओ का स्वागत करूँगा ताकि बेहतर रचना दे सकू. प्रस्तुत है पहली कविता इस ब्लॉग पर.
धन्यवाद.
रामकिशोर उपाध्याय
19.10.2011
'लोग कहें मधुप, मैं कहूँ फ़कीरी'
हूँ विनम्र , पर झुकता नहीं मस्तक ,
लोग कहे अभिमानी, मैं कहूँ खुद्दारी.
हूँ राजा , पर लुटता नहीं अविवेक,
लोग कहें कृपण, मैं कहूँ व्यवहारी .
हूँ समर्पित, पर करता नहीं अनुकरण,
लोग कहें एकाकी, मैं कहूँ मजेदारी .
हूँ कठोर ,पर थोपता नहीं अनुशासन,
लोग कहें मृदुल , मैं कहूँ समझदारी .
हूँ मुक्त, पर भूलता नहीं अनुपालन,
लोग कहें मधुप, मैं कहूँ फ़कीरी.
२४.९.२०११
वास्तव मे आपकी यह कबिता आपके 'प्रतिनिधि कबिता' के रूप मे सम्मान किए जाने योग्य है | इतनी सुंदर कबिता लिखने के लिए साधुवाद | जयबिन्द !
ReplyDeleteकिसी भी व्यक्ती को स्वयं उससे अधिक कोर्इ दूसरा नहीं जान सकता। लेकिन फूलों के बारे में शायद यही सत्य है कि उनकी सुन्दरता और उनसे मिलने वाली खुश्बू का अहसास सबको समान रूप से हो जाता है। इस कविता के माध्यम से आपका ऐसा ही परिचय मिलता है।
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