Friday 21 October 2011

'दिवास्वप्न'

'दिवास्वप्न'
पथरा गई थी
उसकी दो आंखे देखते-देखते ----
साकार होने का क्षण
उस दिवास्वप्न को
जो दिया था उसे व्यवस्था ने --
आश्वासनों का अक्षय -पात्र मिला था सभी से 
जब भी वह रेंगता था उसे पाने को
बिना सींग वाले राक्षस उसे त्राण देने लगते थे 
और वह प्रयास करने लगता था मुक्त होने का
उसकी सूखी  हड्डियाँ 
भक्षण करते-करते हो गयी थी
जरा सख्त --
दर्द करने लगते थे  जबड़े उसके
आश्वासनों का व्यंजन चबाते-चबाते
सुपोषण का वह
शिकार बन गया था.
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