Saturday, 22 April 2017

मत पढ़ाओ

पगडण्डी से राजपथ 
है सभी खून से लथपथ 
किसे परवाह कौन बोल गया 
और क्या रह गया अकथ 
शांत सागर में अब उठती हैं ऊँची ऊँची लहरें 
वो भी अमावस में 
चाँद पर भी अब लग गए हैं पहरें 
वो भी मधुमास में 
किसको अब चिंता है 
किसकी पीठ पर बंधा ,किसी के पेट में या किसे के साथ 
एक वही मासूम बिलखता भूख से 
है बस दो निवालों की दरकार 
उसे जो आज फिर चौराहे से गया खाली हाथ 
मत पढ़ाओ उसको 'विश्व पृथ्वी दिवस' का पाठ ......बरखुरदार 
*
रामकिशोर उपाध्याय

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