Wednesday 3 June 2015

ओ हरिया ! ला और डाल रे .....................


आज सारे गम भुला लूँ ,
इस गीले छप्पर को जलाकर
फिर यह सूखा तन तपा लूँ 
फिर इस दुनियां को दिखाकर ठेंगा
लम्बी -लम्बी डग भर लूँ
बोलता क्यों नहीं,जुबान तो बाहर निकाल रे ..
अरे ओ हरिया ! ला और डाल रे .....................
*
इस जग ने मुझको क्या दिया है ,
नाम मेरा एक रेखा के नीचे लिखकर ,
अंगूठा भी काटकर रख लिया है
सुखिया को भी स्कूल से निकाल दिया है,
और मत बोल खोपड़ी में उठ रहे है अब कई उलटे-सीधे सवाल रे ....
अरे ओ हरिया ! ला और डाल रे .....................
*
कल धन्नो की साडी फट गई
गाय की बछिया मर गई
एक बीघा में जो थी फसल वह भी इस बरसात में मर गई
और नौकर भये तो साहेब से उधार मांगने पर डांट पड़ गई
कौन अब बुरा माने और किसका करे मलाल रे ...
अरे ओ हरिया ! ला और डाल रे .....................
*
क्या कहते हो जी
सब कुछ हाज़िर है जी
ले आओ साड़ी , भर आओ फीस या
खरीद लो नमक या फिर भाजी
'क्रेडिट-कार्ड' को देखा नही जी
राजा बाबू दे गए है जी
बस खाते से पैसा निकाले जाओ
और जीये जाओ ...
फिर तो सारे हल हो गए जिंदगी के सवाल रे....
अरे ओ हरिया ! ला और डाल रे......................
*
अब तो अपने पास है
क्रेडिट कार्ड ...
और अब क्रेडिट पर चलेगी यह जिंदगी
एक क्रेडिट कार्ड जैसी ही
अच्छा किया जो बता दिया तूने
वरना मुझे तो नहीं था इसका तनिक भी ख्याल रे ...
अरे ओ हरिया ! ला तनिक और डाल रे......................
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रामकिशोर उपाध्याय

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