Friday 22 August 2014

एक गीतिका
-------------
नाम बड़े और दर्शन छोटे,व्याप्त यही परिभाषा,
ये दुनिया ऐसे ही चलती,,,बस तू देख तमाशा |
*
कागा हुए कोयल और घर में श्वान बने है शेर,
कभी युद्ध मध्य कायर बोले है वीरोचित भाषा|
*
कल जो सच था आज वही है झूंठ जगत में,
वासना करे शांत अब तो धर्म की जिज्ञासा |
*
कुत्ता खाए मालपुआ और आदमी सोये भूखा,
अमीर चखे सत्तामृत और गरीब सहे हताशा |
*
ज्ञानी भये अज्ञानी और अज्ञानी बने है विज्ञानी,
चाटुकार करे रोज सिंहासन की तीव्र अभिलाषा
**
रामकिशोर उपाध्याय

3 comments: