कहीं कोई हवा चले ...
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इन
गुंचों को यूँ ही महकने दे
ज़ीस्त में
कुछ देर और ....
न जाने
कब कोई हवा
बदरंग कर दे
इस पुरकशिश बाद-ए-सबा को |
**
रामकिशोर उपाध्याय
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इन
गुंचों को यूँ ही महकने दे
ज़ीस्त में
कुछ देर और ....
न जाने
कब कोई हवा
बदरंग कर दे
इस पुरकशिश बाद-ए-सबा को |
**
रामकिशोर उपाध्याय
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