और मैं शायद इनके बीच होता हूँ ********************************
अहसास ....
कभी घर में लगी अलगनी पर लटके होते है
बेतरतीब
और कभी इस्त्री किये अलमारी में हेंगर पर होते हैं
सुसज्जित
परन्तु कैसे समझाऊँ ?
उन्हें शायद ...
मेरी ठेठ देहातीपन
या फिर मेरी नगरीय भद्रता
दोनों ही स्थितियां रुचिकर नहीं लगती
और मैं शायद इनके बीच होता हूँ
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रामकिशोर उपाध्याय
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-07-2014) को "स्वप्न सिमट जाते हैं" {चर्चामंच - 1664} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'