ह्रदय-कमल कर में,
शुभभावनाओं से गुथा हार,
दर्शन पाकर धन्य हैं,
स्वागत करो हे नाथ! स्वीकार।
आनंद असीम उर में
उठती हैं हिलोरे बारम्बार
पुलकित हो उठा उपवन
नव्पुष्पो से करा श्रंगार,
स्वागत करो हे नाथ! स्वीकार।
वाणी का मृदुल प्रवाह
नयन द्वय से झरे स्नेह अश्रुधार
रीता हुआ घट प्रशंसा का
रुद्ध कंठ , अभिव्यक्ति लाचार,
स्वागत करो हे नाथ! स्वीकार।
नहीं उपालंभ विलम्ब का
केवल स्नेहिल मिलन -विचार
मेरा मस्तक हैं सज्जित आसन
खुले गेह के समस्त द्वार
स्वागत करो हे नाथ !स्वीकार।
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