Monday, 15 October 2012

तमन्ना


उनको  ढूंढते-ढूंढते  सुबह से अब रात भी गहरी  हो चली है 
मैं जा रहा हूँ  सोने यह सोचकर  वे शायद सपनों में मिलेंगे

जब भी बुलाता हूँ  , फिर मिलूंगी कहकर वो टाल देती 
हम तो खाक बनकरके उनकी  साँसों में ही जा घुलेंगे 

इस दिल के धधकते जज्बात को वो व्यापार हैं कहती  
दिल को हाथ में लेकर हम  उनके ही बाज़ार में मिलेंगे

कहते हैं कि खैर नहीं अपनी , जरा सी हुई जो कोई गलती  
गर चाहा खुदा ने तो कल  उनके हाथ में हाथ डाले मिलेंगे


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