Thursday 28 June 2012


जो पाली चाहत हमने बसने की दिल में
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जो चाही हमने इजाज़त रहने की नैनो में ,
तो पहले से ही इनको काजल से भर लिया .

जो जाहिर की मंशा  रहने की जुल्फों में,
 तो पहले से ही इनको फूलों से सजा लिया

जो मांगी  मोहलत लटकने की कानों  में ,
तो पहले से ही इनको झुमको से पटा लिया .

जो हमने की गुज़ारिश सजने की लबों में ,
तो पहले से ही  इनको सुर्खी से रंग लिया .

जो पाली चाहत हमने बसने की दिल में ,
तो पहले से ही इसको चुनरी से ढंक लिया .

जो मांगी हमने मन्नत सिमटने की कटि में ,
तो पहले से ही इसको करधनी से छुपा लिया .

जो रखी ख्वाहिश हमने रचने की पाँव मे,
तो पहले से ही इनको महावर लगा दिया .

2 comments:

  1. nice :) quite different and beautiful

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  2. अगर मैं इस कविता का शीर्षक ' हाउस फुल ' रखता तो कैसा रहता?

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