Wednesday, 13 June 2012


भ्रम

शिला सी बन
लस्त  पड गयी
मैं
भयाक्रांत होकर कि वो आयेगा
और
मेरे  शील को
मेरे  पंचभूत को
बरसों से सुरक्षित मेरे सौंदर्य को
तार -तार कर जाएगा
और
मैं
मुर्दे के साथ चलते हुये
पानी के घड़े के समान
अपनी ही चिता के सामने
फोड़ दी जाऊँगी –
अभिशप्त हो जाऊँगी
फिर उसी पंचभूत मे विलीन होने के लिए

पर वो क्या मेरे 'स्व' को छु पाएगा
स्थूल तो नाशवान है ही
यह सोचकर मुझमें
थोड़ी सी हरकत बाकी थी
वो आया तो ..
पर दो फूल रख गया
एक अपनी विश्वसनीयता पर
और एक मेरे भ्रम पर   !

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