Monday 18 July 2016

क्या कभी वटवृक्ष ......


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दर्द में बिलकुल न झुके
आस में तनकर खड़े
विश्वास में चुप-चुप दिखे
क्या तुम कभी पिता थे .................
*
भार से झुककर चले
धर्य में डटकर खड़े
प्यार में पल- पल बहे
क्या तुम कभी माँ थे ........................
*
धूप में सीधे खड़े
साँझ को नीचे झुके
वर्षा में टप-टप झरे
तुम क्या कभी वटवृक्ष थे .......................
*
रामकिशोर उपाध्याय

2 comments:

  1. सच वटवृक्ष के समान होते हैं माँ-बाप। .
    बहुत सुन्दर

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    1. कविता जी सराहना के लिए ह्रदय से आभार

      रामकिशोर उपाध्याय

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