Wednesday, 1 June 2016

मुसाफिर !देख समय की ओर ..........


मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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गहरी नदिया दूर है जाना
मुश्किल हैं दिल  को  समझाना
लहरें करती मिलन को शोर
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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डूबें हैं सब गाँव नगरिया
देख, नांच रहे हैं सब ताल तलैया
चढ़ता पानी,चप्पू कमजोर ...................
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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मेघा छाये ,मन हरसाये
बालक झट से नैय्या लाये
वन में नाचा नेह का मोर ......................
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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मन का दादुर बोले दिन रैना
मिलन के बिना कहीं पाये न चैना
लगता खीचें कोई जैसे पतंग की ड़ोर .........
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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ढ़लने दे तू धार अभी
चल  जायेगी पतवार  तभी
फिर होगी मिलन की भोर ..................
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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रामकिशोर उपाध्याय

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2016) को "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक-2362) (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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