Thursday 2 July 2015

ग़ज़ल

ग़ज़ल
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बंदगी के सिवा ना हमें कुछ गंवारा हुआ
आदमी ही सदा आदमी का सहारा हुआ
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बिक रहे है सभी क्या इमां क्या मुहब्बत यहाँ
किसे अपना कहे,रब तलक ना हमारा हुआ
*
अब हवा में नमी भी दिखाने लगी है असर
क्या किसी आँख के भीगने का इशारा हुआ
*
आ गए बेखुदी में कहाँ हम नही जानते
रह गई प्यास आधी नदी नीर खारा हुआ
*
शाख सारी हरी हो गई ,फूल खिलने लगे
यूँ लगा प्यार उनको किसी से दुबारा हुआ
*
रामकिशोर उपाध्याय

3 comments:

  1. उम्दा अशआर...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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    1. आदरणीय रचना को सम्मान देने के लिए ..आपका हार्दिक आभार

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  2. शर्मा जी दाद के लिये तहे दिल से शुक्रिया

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