Friday 10 July 2015

एक गीतिका/ग़ज़ल *















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दे गई दर्द जब हर दवा क्या कहें
हो गया वक्त ही बेवफ़ा क्या कहें
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इश्क में चाक दामन उसी ने किया
पर मिली बस हमीं को सजा क्या कहें
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साँस सरगम बनी जब बजी प्रेमधुन
क्या किसी ने कहा या सुना क्या कहें
*
प्यार की हर तमन्ना हुई थी जवां
आ रही है अभी तक सदा क्या कहें
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प्यास जब कुछ बढ़ी दूर थी वो नदी
बीच मझधार जा खुद फँसा क्या कहें
*
रामकिशोर उपाध्याय
10 जुलाई 2015

9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-07-2015) को "वक्त बचा है कम, कुछ बोल लेना चाहिए" (चर्चा अंक-2033) (चर्चा अंक- 2033) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. बेहद खुबसूरत गजल -- नये संदर्भ में
    बधाई

    आग्रह है -- ख़ास-मुलाक़ात

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    1. रचना को सम्मान देने के लिए ..आपका हार्दिक आभार ..अवश्य ही मुलाकात होगी ,,

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  3. इश्क में चाक दामन उसी ने किया
    पर मिली बस हमीं को सजा क्या कहें

    सुन्दर........

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    1. रचना को सम्मान देने के लिए ..आपका हार्दिक आभार

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  4. इश्क में चाक दामन उसी ने किया
    पर मिली बस हमीं को सजा क्या कहें
    *...अति सुंदर

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    1. आदरणीय रचना को सम्मान देने के लिए ..आपका हार्दिक आभार

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  5. अति सुन्दर गीतिका

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    1. आदरणीय रचना को सम्मान देने के लिए ..आपका हार्दिक आभार

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