Sunday, 15 June 2014

कब बरसेगा ?
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अब तो
दिल हुआ जाता है
जेठ का महीना
इस जलती धूप में
न जाने कब से
बह रही है पुरवा हवा विरह की
उड़ गए बदरा सांवरियां
परदेश की गलियों में हो रही है रिमझिम
बंजर धरती का आंचल
अब नागफनी के पौधों को भी तरसता है
अक्षत दूर्वा बनकर
मैं कब तक आसमानी कहर सहती रहूंगी
सुना है इस बरस मानसून का मौसम लम्बा नहीं होगा
परन्तु पूर्वाग्रहों की छतरी
मै बिलकुल नहीं खोलूंगी इस बार
भीगकर अन्दर तक समा लेना चाहती हूँ बरसात
राम जाने अहसासों की
नन्ही नन्ही फुहारें लिए
प्रेम का सावन कब बरसेगा
मेरी नगरिया में ......?
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रामकिशोर उपाध्याय

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