Tuesday 22 November 2022

तिश्नगी

तिश्नगी इतनी थी

कई समंदर पी गए,फिर न बुझी

लौ फिर ऐसी लगी

कि अगन लगाए से भी न लगी
*
रामकिशोर उपाध्याय

No comments:

Post a Comment