Monday 15 March 2021

वो कौन थी ? ----------

 

न तो उससे पहले मिला था
न शायद फिर कभी मिलूँगा
मगर उसकी देह को स्पर्शकर
आया था सुगंध का इक झोंका .........

वो शायद मत्स्यगंधा थी
मेनका थी या फिर रम्भा थी
वो प्रेम सरोवरों में पम्पा थी
वो कामदेव की प्रिय चंपा थी ............

वो कोयल की कूक थी
वो मन की अनकही भूक थी
किसी बहती नदी का पानी थी
सागर की लहरों की रवानी थी ..........

वों स्वप्न सरीखा परिंदा थी
जो दिन के उजालों में भी जिंदा थी
जिस्म में वो धडकन थी
उम्र में वो यौवन और बचपन थी ....

वो नाम न पहले सुना था
और न कहीं लिखा होगा
न किताबों में किस्सा थी
वो तो कल्पना का हिस्सा थी ....

वो कौन थी ?
न आँधी और न गुम हवा थी
वो मेरे हर दर्द की दवा थी
वो सन्नाटे में चीखता मेरा मौन थी .........
*
रामकिशोर उपाध्याय

12 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-03-2021) को    "अपने घर में ताला और दूसरों के घर में ताँक-झाँक"   (चर्चा अंक-4008)    पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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  2. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    वो कौन थी ?
    न आंधी और न गुम हवा थी
    वो मेरे हर दर्द की दवा थी
    वो सन्नाटे में चीखता मेरा मौन थी ......वाह!

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    1. अनीता जी सराहना के लिए हार्दिक आभार

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  3. Replies
    1. विकास जी सराहना के लिए हार्दिक आभार

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  4. वाह खूबसूरत भावों से सजी सुंदर रचना

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  5. कल्पना का इतना सजीव च‍ित्रण...क‍ि ''वो नाम न पहले सुना था
    और न कहीं लिखा होगा
    न किताबों में किस्सा थी
    वो तो कल्पना का हिस्सा थी ....'' वाह उपाध्याय जी वाह

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    1. अलकनंदा जी सराहना के लिए हार्दिक आभार

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