Saturday, 2 December 2017

अजीब शर्त

न वादे, न कसमें 
न वफ़ा, न जफ़ा 
न हम उन्हें बाँध पाए 
न वो आज़ाद रह पाए 
मिले तो मुकद्दर 
न मिले तो खली नहीं तन्हाई
मोहब्बत ने यह ताउम्र
कैसी अज़ीब शर्त निभाई
*
रामकिशोर उपाध्याय

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