फिलहाल....
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रेत के ढूह
सिकती है रूह
दिखती नहीं छाँव
लोहे के पाँव
चले कैसे..
फिलहाल
लाइन में खड़ा है वो
*
रामकिशोर उपाध्याय
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रेत के ढूह
सिकती है रूह
दिखती नहीं छाँव
लोहे के पाँव
चले कैसे..
फिलहाल
लाइन में खड़ा है वो
*
रामकिशोर उपाध्याय
नोटबंदी में खड़े एक मजबूर इंसान की मजबूरी बयान करती अति सुंदर क्षणिका।
ReplyDeleteआदरणीय सराहना के लिए हृदय से आभार
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