Monday, 2 May 2016

लिख दो बस ...........प्यार


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सोचे बिना ही उस पथ पर चली 
छाँव मिलेगी या होगी कहीं धूप मनचली 
राह में क्या मिलेगे साजना 
नीड़ के तिनके जुटेंगे या होगा तूफान से सामना
अचानक मन ने कुछ कहा
लगा कही कोई भीतर लावा बहा
थी अनमनी मगर फिर भी बूंद सा ले हौसला
बढ़ गयी बस पुष्प के आंचल से कुछ मधु चुरा
नांव ली कागज़ की और भाव की पतवार
हो रही हूँ अब लहर पर फिर सवार
यह जिंदगी हो बेशक तेज धार
मगर जाना है मुझे वहां प्रियतम रहते जहाँ नदिया के पार
लो अब हो रही हूँ खड़ी
कलम तुम्हारी उधर क्यों सुस्त पड़ी
बस लिख सको तो लिख दो बस ...........प्यार
और करते रहना इसका सदा इज़हार
*
रामकिशोर उपाध्याय

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-05-2016) को "सुलगता सवेरा-पिघलती शाम" (चर्चा अंक-2332) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय सराहना के लिए आभार ...सादर
    रामकिशोर उपाध्याय

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