Saturday, 20 February 2016

जग धूणा

पवन ले उड़ा
परिंदों के कलरव
और गंगा की लहरों से उठता 
संगीत .....
और 
मंदिर की घण्टियों से निकल 
किसी के अधरों पर जा उभरा 
गीत .....
रश्मिरथी !!
तुम भी अब प्राची से 
पुष्पगुच्छ लेकर चल पड़े होंगे 
इस विश्वास से 
कि संध्या तक मिलेगा 
मीत ,,,
तपूंगा मैं भी 
इस जग धूणे में 
लेकर मन में ऐसी ही प्रीत ,,,,।
*
रामकिशोर उपाध्याय

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