बदलियाँ, बे-वजह।
चीरती हैं गोलियां, बे-वज़ह।
बुलंद होसलें से जब हम अपनी मंजिल को नापते हैं ,
कभी कभी अंजाम को ठेलती है खामोशियाँ , बे-वज़ह।
कहते सयाने कि बना भेस चलाचल जैसा हो देस तेरा ,
कभी कभी मिजाज़ को कुरेदती हैं होशियारियाँ,बे-वज़ह।
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