Saturday, 31 August 2013










तमन्ना
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के आँखों से इशारा एक कर दे ,
और आने का वादा एक कर दे।

ना  गुरेज होगा कदम बोसी से ,
वो बस पांव  बाहर  एक कर दे।

कसम से खुदा बना  देंगे उन्हें ,
के नाम हमारे रात एक कर दे।

रामकिशोर उपाध्याय
31.8.2013

Friday, 30 August 2013

एक नया रिश्ता
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इस रिश्ते को एक नया मोड़ देते है ,
अब तलक की बेवफ़ाई छोड़ देते हैं।  

इश्क को अब सरेआम छोड़ देते हैं,
तनहाई से टूटा नाता जोड़ लेते है।

हिज्र आ ही गया दिल के दरीचों से,
वस्ल की तमन्ना अब छोड़ देते हैं।

राम किशोर उपाध्याय 
*बस जनाब !!

दिल लिया हैं तो जज्बात भी लीजिये ,
बदले हुए दिल के हालात भी लीजिये।

मुद्दतों से नम हैं चश्म तुम्हारी याद में ,
आके अब थाम ये बरसात भी लीजिये ।

करते हैं तस्लीम तुम्हारी दयानतदारी ,
तो फिर  वफ़ा की सौगात भी दीजिये ।

नहीं आसान होता बिगड़ी बात बनाना ,
अब नफरत के ख़यालात भी छोडिये ।

बहुत हो गया हैं हुकूमत का मुजाहिरा  ,
तो अब हमारी  खिदमात भी कीजिये।

लम्बे अरसे तक परखा ये वज़ूद हमारा ,
दिखा अब अपनी औकात भी दीजिये ।

रामकिशोर उपाध्याय


Thursday, 29 August 2013

टूट रहा है ,,,

ये टूट रहा हैं रोज
वज़ूद मेरा 
वो बढ़ रहा हैं रोज 
दर्द मेरा 

मैं तेरे कंधे पर अपना सर भी नहीं रख सकता 
जिंदा हूँ 
लोग क्या कहेंगे सोचकर 
इस मोड़ पर आवारा नाम भी नहीं रख सकता

तू गर ख्वाबो में ही आ जाये
हो सकता हैं
तेरा कान्धा तो ना मिले
मेरे सर को
शायद 

चार कंधे ही मिल जाये

रामकिशोर उपाध्याय

Wednesday, 28 August 2013

जय श्री कृष्णा 

आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी 
1. 

धर्म व कर्म 
फलाकंक्षा रहित 
सोलह कला 

२. 

काम व मोक्ष
सम्पूर्णता विशाल
हैं अविजित

3.

ईश भी सखा
विनाश भी विकास
श्याम तू श्वेत

Ramkishore Upadhyay
काव्य प्रतियोगिता :२ (शीर्षक: भादो, बरसात और बाढ़)

एक विनम्र प्रस्तुति ;;;;;;;;;;;;;;;;;;

बरसात
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मत बरसना बदरा मेरे गाँव में अबकी बार
टूटी मेरी छपरिया,,,अभी पड़े खाली कुठार

अरे निष्ठुर !पिछले बरस जब आये  तुम
बह गयी फसल हमारी, डूबे घर और द्वार

जब भी आते हों लाते संग विपत्ति हज़ार
धीरे बहती नदिया तब करती तेज फुन्कार

पेड़ भी टूटे,तट भी टूटे,बिलखे बाल बछड़े
लुगाई रोवे हैं जलावे गीली लकड़ी बार बार

उतना ही बरसना भर जाये धरा की झोली
कोई न सोये भूखा,ना हो बाढ़ का हाहाकार

रामकिशोर उपाध्याय
२८/०८/२०१३

Tuesday, 27 August 2013

वापस तो नहीं लौट जाओगे ?
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कल रात
मैं अँधेरे में
चल रहा था
एक आहट हुयी
पलट कर देखा तो
कोई नहीं था
फिर साथ -साथ चलने
का आभास हुआ
फिर मुड के देखा
तो कोई बुदबुदाया
मैं घबराया
वह जोर से चिल्लाया
अरे पहचानते नहीं
मैं हूँ तुम्हारा साया,,,,,
मेरा साया ,,,
मैं बरसों से साथ तो हूँ
मैंने तो  नहीं देखा
कभी मिले भी नहीं
मिलते कैसे ?
तुम तो दुनिया को देखते रहे
सपनों में जीते रहे
कामयाब होने के जुगाड़ में लगे रहते हो
फेल होने से डरते हो
दौड़ते रहे हो अबतक --
फिर मैं कैसे मिलता तुम्हे
आज भी
तुम्हे इसलिए मिलगया
कि तुम महज अपने बारे में सोच रहे थे
चकाचौध से निकल के
अँधेरे में चहल कदमी कर रहे थे
मैं तभी मिलता हूँ
जब बाहर अंधेरा हो
मैं अन्दर का दीपक हूँ
ब्रह्म जोत से जलता हूँ
अब तुम
वापस तो नहीं लौट जाओगे ?
नहीं तो मैं ये चला,,,,,,,,,,,,,  
वोट से लिखना एक नयी कहानी  
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भूखे को रोटी,मिले प्यासे को पानी
यही हैं मेरे देश की विरासत सुहानी

देख रहा बुधिया, सोच रहा जुम्मन
किसको रोटी,वहां ठनी जंग जुबानी

कर्ज़ के डूबा बाप,पैसा नहीं गांठ में  
कुंवारी बैठी बेटी,बीती जाये जवानी

कैसे पढ़े स्कूल,हैं फीस का सवाल
बच्चा करे मजूरी,औरत ढोए पानी

तन पे नहीं कपडा,नहीं सर पे छत
नंगे बदन पड़ती जूती हैं चटकानी  

पंचायत में लगती  कुर्सी की बोली
मदमत्त राजा बोले प्रजा की बानी

कैसे देंगे रोटी ,कहाँ से आवे पैसा
दो में चाय पीये पांच में बिरयानी  

मेहनतकश बुधिया और जुम्मन
वोट से लिखेंगे एक,,नयी कहानी    

रामकिशोर उपाध्याय
२७/८/२०१३ 

Monday, 26 August 2013

शुभ रात्रि , मित्रों !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

जिन्हें समझते रहे कौम का रहनुमा
वो खुद ही वेद कुरान खंगालते मिले

रामकिशोर उपाध्याय 

दर्द दे गया वो जिंदगी भर के लिए

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वह बस आया एक पल के लिए
दर्द दे गया जिंदगी  भर के लिए

हम तो आंखे ही बिछाते रह गए
वो नींद ले गया उम्र भर के लिए

जब भी चाहा जज्बों की पैमाइश
वो राजी न हुए  इंच भर के लिए

हम तो जी  गए दरिया की तरह
वो सूख गया अश्क भर के लिए

जब निकले आखिरी सफ़र पर
वो मुकर गया मुट्ठी भर के लिए

रामकिशोर उपाध्याय 

Sunday, 25 August 2013











समय
-------

समय
फिर कुछ नए रंग
भर जीवन में ....

समय
फिर  कुछ नए ढंग
भर मुस्कान  के  ....

समय
तू पीछे जा इतना 
सुनहरे पल उठ के आ जाये 
कुछ अतीत के ....
या फिर ले चल उनके पास

समय
तू फिर तेज   दौड़ इतना
कि सपनों की बारात का
दूल्हा आज बन जाऊं

समय
तू फिर कोई चक्कर चला
मैं 'आज' की कैद
से मुक्त हो जाऊं....

समय
तू फिर कोई छल कर समय से
समय के हाथों आज हो पराजित ..
हो पराजित अवसाद के क्षण

समय 
तू फिर रच कोई शब्द नये
गगन में विजय - उदघोष के
प्रार्थना के
आशा के
क्योंकि
एक तू ही हैं  सत्य
जीवन का
जीवन के आधार  का ....


रामकिशोर उपाध्याय

शीर्षक 'पहाड़' ---- Haiku

     1 .
पहाड़ जैसे
धन लक्ष्मी  भंडार
स्वामी मस्त
     2.
पहाड़ जैसे
दुःख का अभिशाप  
मानव त्रस्त
      3.
पहाड़ जैसी
प्रेम से अभिसक्त
बांध अटूट  
     4.
पहाड़ जैसे
देश का उच्च भाल
प्रजा निहाल
     5.
पहाड़ जैसी
ममता का आंचल
आनंद मन
      6.
पहाड़ जैसी
वृद्धि का उपहार
जग प्रसन्न  
      7.
पहाड़ नहीं
तो बन घन नहीं  
सृष्टि विनाश
      8.
पहाड़ रहे
बचे देव मानव
यज्ञ सतत    

मैं तो जहर भी पी गया आब-ए -हयात  समझकर
एक तेरी बेवफाई का गम था जो गले से ना उतरा

तेरी बेवफाई भी मंजूर हो जाती हमको
करने से पहले बताया जो  होता हमको

इश्क ना वफ़ा करने की शर्त पे होता है और,, न बेवफाई  
ये आग अगर पकड़ ले दामन तो फिर जाती नहीं बुझाई

Ramkishore Upadhyay

Saturday, 24 August 2013

Kavy Pratiyogita -1 'प्रेम '

एक शब्द 'प्रेम'---------ढाई अक्षर का
भावों में माणिक,सरल और सुघड़ सा 

हैं वैसे,,,,,,,,कई प्रकार
फैले,,, तो नहीं वारापार

कोई इश्क मजाज़ी करता
कोई इश्क में रब नू लबता

कोई हीर की आंख में खोजता
कोई रांझे की पीर में जा ढूंढता

कोई कहीं भी दौडले,कही भागले
बन्दे बस तू खुद से इश्क,,करले

रामकिशोर उपाध्याय

प्रेम -प्रतीक्षा


------------------

मन डोल रहा बार-बार
देख सावन की पड़ती ठंडी फुहार
प्रेम-ज्वाला भड़क उठी
लगी प्यास बुझा दो मेरे सरकार    (1 )

कई सावन बीते गए
अम्बुआ पे आयी गयी बहार
सखी  भी करे ठिठोली
अब तो आ ही जाओ भरतार         (2)

दिन बीते गुजरी रात बेहाल
सेज पड़ी हैं सुनी सूखे फूल हज़ार
काया भी अब साथ न देगी
कब करू सजन मैं  तेरा  इंतजार   (3)  

रामकिशोर उपाध्याय 
प्रेम -प्रतीक्षा
------------------

मन डोल रहा बार-बार
देख सावन की पड़ती ठंडी फुहार
प्रेम-ज्वाला भड़क उठी
लगी प्यास बुझा दो मेरे सरकार    (1 )

कई सावन बीते गए
अम्बुआ पे आयी गयी बहार
सखी  भी करे ठिठोली
अब तो आ ही जाओ भरतार         (2)

दिन बीते गुजरी रात बेहाल
सेज पड़ी हैं सुनी सूखे फूल हज़ार
काया भी अब साथ न देगी
कब करू सजन मैं  तेरा  इंतजार   (3)  

रामकिशोर उपाध्याय 
प्रेम -प्रतीक्षा
------------------

मन डोल रहा बार-बार
देख सावन की पड़ती ठंडी फुहार
प्रेम-ज्वाला भड़क उठी
लगी प्यास बुझा दो मेरे सरकार    (1 )

कई सावन बीते गए
अम्बुआ पे आयी गयी बहार
सखी  भी करे ठिठोली
अब तो आ ही जाओ भरतार         (2)

दिन बीते गुजरी रात बेहाल
सेज पड़ी हैं सुनी सूखे फूल हज़ार
काया भी अब साथ न देगी
कब करू सजन मैं  तेरा  इंतजार   (3)  

रामकिशोर उपाध्याय 
प्रेम का प्रभाव
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राँझा को हीर के इश्क ने मारा न होता ,आशिक ने किसी नाजनीं का दिल ना तोडा होता
हसीना ने महबूब को दुतकारा ना होता,तो शाइरों के पास भी लिखने का इजारा ना होता

हुस्न में वफ़ा होती और इश्क में जूनून,वादों को निभाया और कसमों को तोडा ना होता
उंगलियों पर नाचते जिस्म होते,,ना अल्फाज़ ही होते और सफीनों का ज़खीरा ना होता

रामकिशोर उपाध्याय
L

Friday, 23 August 2013

असमान की साजिश
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तुम्ही से शुरू हुयी अपनी ये कहानी
आसमां में रची एक साजिश सुहानी

सितारे गिरे तो टंक गए गेसुओं  में
जहाँ में पुकारा तुझे परियों की रानी

छिप गया वो चाँद आंचल में तेरे
वस्ल में ऐसे उतरी बिस्तर में चांदनी

चादर में समेट लिया नन्हे अफताब को
रूह में कैद हो गया वो चेहरा नूरानी

हिज्र के समंदर से निकल आये हम    
शुक्रिया उनका,थी अपनी कश्ती पुरानी

रामकिशोर उपाध्याय

Thursday, 22 August 2013

तेरा हुस्न
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कल तुम्हारे हुस्न की बात जब होठों से फिसली, 
सितारों से रात में एक बारात चुपके से निकली. 
चाँद को बनाकर दूल्हा चमकी कड़क के बिजली,
शरमाये फूलों ने कहा हमसे भी भली है ये कली.

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आने की खबर लगता आसमान को हो गयी
सुबह सूरज तुझे मेरे बिस्तर में ढूंढ रहा था

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फूल और तुम
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तुमसे जुदाई को बयां हम नहीं कर सकते
बड़े पुख्ता ख़त से लिखी जो ये तकदीर में

घर के फूलों में तेरा अक्स देखते हैं अक्सर
बडी खुलके हंसी थी जब दिल-ए तस्वीर में
**************************

Tuesday, 20 August 2013


मान -न- मान

अमावस में भी कभी चाँद जाता है निकल    
आनंद  में जैसे दर्द बह जाता हैं  अविकल

उच्च शिखर के समक्ष होते हैं  नत, परन्तु
प्रेम से घृणा का ताल,,  हो जाता हैं निर्मल  

बड़ी बड़ी ज्ञान की बातें बनाती नहीं सफल
पुजता वही जो पराजय को जाता है निगल

ठन्डे कमरे ले जाते नही किसी लक्ष्य पर
पाता वही उसे, जो धूप में जाता हैं निकल      

वक्र ग्रीवा,कटु जिव्हा करती हैं, भयभीत  
मान पाए,,परपीड़ा में जो जाता हैं पिघल 

राम किशोर उपाध्याय

  

Sunday, 18 August 2013

इस बेवक़्त


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वो जाग रहा  था
कुछ भाग रहा था
कुछ छोड़ रहा था
कुछ तोड़ रहा था
कुछ समेट रहा था
कुछ लपेट रहा था
कुछ लुट रहा था
कुछ लूट रहा था

शब्द ,,,,,,,,,,,,,,,,,

वो बेवक्त गुमनाम शायर
वो एक अनजान मुसाफिर

वो बस जाग ही तो रहा था

रामकिशोर उपाध्याय

Saturday, 17 August 2013


हम तो अपनी कब्र तक खुद चलके गए
तुम्हे किसने कहा कि मिटटी देने आना


हो मादरे वतन की आबरू जब खतरे में
ये जुबानी खंजर अपने गिरह में रखना

वक़्त बे वक़्त 
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तुझे पाने की जुस्तजू तब हद से गुज़र गयी
जब कहा क्या हैं मुझमे कि पागल हो गए हो 
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बेसुरों के सामने,,,,अच्छी नहीं सुरताल लगती है
दादुर जब बोल रहें हो कोयल,,,,चुपचाप रहती है 


रामकिशोर उपाध्याय   

नूर खुदा का

नहा के जब  लटों को कुछ ऐसे   झटका
निकल आया चाँद था बादलों में अटका 

आह से वाह वाह तक कह गए सब कुछ
थी एक जन्नत,,,वो बस था नूर खुदा का

रामकिशोर उपाध्याय 

लेलो मेरी यह कश्ती और मेरा पतवार भी
जब डूब ही जाना हैं तेरी आँखों के भंवर मे

ना हिज्र का शिकवा रहेगा और ना वस्ल की आरजू
हम फ़ना होने को बेजार हैं तू उठा तो सही शमशीर 

रामकिशोर उपाध्याय 
कल रात जब नींद नहीं आयी !
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रोता रहा रात भर,,,पूछा और ना किसी ने रोका
अश्क उभरे जब हर्फ़ बनके, सारे जहान ने टोका

रामकिशोर उपाध्याय

Friday, 16 August 2013

उससे कुछ कहते जाना
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हिमाच्छादित
पर्वत शिखर पर रचना  हैं ठिकाना

एस्किमो  बन
इग्लू  में रहना है दिखाना

अक्षर बन
विधाओं का तारा मंडल हैं बनाना

अनुभूतियों बन
सागर लहरों पर तैराना हैं आशियाना

उन्मुक्त बन
अवगुंठित ह्रदय -पुष्प है खिलाना

पवन बन
मृदुल भावना सा हैं बह जाना  

मेघ बन
भावों की झड़ी सा है रोना रुलाना

काजल बन
प्रिया के चक्षुओं में है जी जाना

प्रार्थना बन
उससे बिन बोले कहना है बताना

और अंत में.............................

खाक बन
प्रभु की चरण -रज में हैं मिलजाना .

रामकिशोर उपाध्याय    

Thursday, 15 August 2013

मैं यह सोचता हूँ
========

पढ़ डाली सारी गीता और कुरान
पर 'अलिफ़' से रहा मैं अनजान

मुर्शिद ने अक्सर बतलाया मुझे
'इश्क-हकीकी'से बचा धर्म ईमान    

हम सब उसके ही बन्दे है ,भाई
राम रहीम से बना ये देश महान

रामकिशोर उपाध्याय 
 सदैव लाल किले से :

लाल किला देता हैं पैगाम अमन का ,करता खबरदार
हम मिटा देंगे तुझे ऐ दुश्मन ! देखा इधर जो एकबार

जय हिन्द

रामकिशोर उपाध्याय

Wednesday, 14 August 2013

विचार  का विचार
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विचार
कच्ची मिटटी होती हैं
संसार के चाक के पर घूमकर
और
लोगों  की ईर्ष्या की आग की तपकर
सिद्धांत
सिद्ध-वाणी
का रूप धरते हैं

रामकिशोर उपाध्याय 
उन्वान 'बोलती तस्वीर ' मैं ,,, हूँ ,,, ना.

मैं जिंदा होके बस एक बुत बनकर  रह गया
वो एक तस्वीर से ही सारी,,,दास्ताँ कह गयी 

बोलती तस्वीर से वादा ले लिया 
हिज्र की सूरत में अब्र में मिलेंगे

रामकिशोर उपाध्याय   

Monday, 12 August 2013

ये हम किस दौर से गुजर रहे हैं !


ये हम किस दौर से गुजर रहे हैं
सच को ,, कहने से मुकर रहे हैं

चंद सिक्कों की खातिर लोग तो
जख्म खुद खंजर से खुरच रहे हैं

आज मेरा मरा था तो कल तेरा
आह ये कैसे नज़ारे उभर रहे हैं

कातिल बना  रहनुमा,फिर भी 
लोग नाउम्मीदी से उबर रहे हैं

तू हिम्मत से कदम  बढ़ा, देख
जुगनू भी अँधेरों से उलझ रहे हैं

रामकिशोर उपाध्याय 

Friday, 9 August 2013

कर दो आज के चाँद को रुखसत आसमां भी मना लेगा ईद
सितारों की भी रवायत है यही तभी तो बरस बाद होगा दीद

रामकिशोर उपाध्याय 

Thursday, 8 August 2013

ईद मुबारक



अगर भूखे को रोटी मिल जाये और प्यासे को पानी
मजलूम को तसल्ली और मजदूर को धेला चवन्नी

तो होती है ईद

अगर बूढ़े को मिल जाये खोयी हुई अपनी जवानी
और बालक को मिल साथी और करने को शैतानी

तो होती है ईद

अगर लालची को मिल जाये पड़ा  चांदी का रुपैया
और इश्क को मिल जाये हुस्न की बिछड़ी कहानी

तो होती हैं ईद

अगर काबिल को मिल जाये इज्ज़त और  मौका
और दरवेश को मिल जाये बस इबादत में रवानी

तो होती है ईद

अगर माँ को बच्चा,बच्चें को मिल जाये खिलौना
बीवी को शौहर और अधेड़ को मिल खोयी जवानी
     
तो होती है ईद


अगर शायर को मिल जाये कोई मजलिस सयानी
और गायक को मिल जाये बस नज्म एक सुहानी


तो होती हैं ईद

अगर तुम हमे गले मिल जाओं आके इस त्यौहार
और जिंदगी को मिल जाये उडान  एक आसमानी


तो होती हैं ईद

Ramkishore  Upadhyay 

Tuesday, 6 August 2013



के दौलतमंद भी होते,
गर हम बेईमान होते।

कामयाब हम पूरे होते,
गर मक्कार थोड़े होते।

हम भी ताजदार होते,
गर लोग  कुचले होते।

रामकिशोर उपाध्याय 

Monday, 5 August 2013

मेरे शहर में शब्दों की जुगाली
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शब्दों के छप्पर से 
विचारों की बूंदे 
तेज़ बारिश में ही गिरती हैं 

लिपा पुता आंगन जल्दी बह जाता हैं 
पर यथास्थिति का ढीठ मोटा बिछौना 
बडे  संघर्ष के बाद ही भीग पाता हैं

लोग अब पक्के फर्श बनाते
छप्पर के स्थान पर
लिंटल डालते
विचारों की बगिया में
घास के स्थान पर कैक्टस उगाते हैं

और

खुले घरों के स्थान पर
कबूतरखानेनुमा फ्लेटों में
खुद ही नहीं मस्तिष्क को
भी बंद करके सो जाते
सोचकर हम सुखी
तो जग सुखी
और अपने कष्ट पर
टेलीविज़न वालों को बुलाकर
सरकार और संसार की
बखिया उधेड़ते हैं
शब्दों की बरसों से रुकी जुगाली करते है
परन्तु शब्दों के छप्पर से एक बूंद भी
अपने सुख के विरोध में
अपनी खोपड़ी पर नहीं झेल पाते हैं. 

Ramkishore Upadhyay

Sunday, 4 August 2013

हर रात का सफ़र
===========

हर रात कोशिश करके तो  सुला देती   हैं मुझे
एक मेरी ऑंखें हैं जो ख्वाब में खोजती हैं तुझे

सूरज भी अक्सर सो जाता हैं साँझ की धूप में
एक चांदनी हैं जो चाँद से छिपके घूरती हैं मुझे

रामकिशोर उपाध्याय 
बस एक निवेदन ! 
===========
नहीं चाहिये !
ये व्यापक  गगन सारा
बस दे दो  टुकड़ा एक  प्यारा 
खिले हो जिसमे अनगिनत तारे
पूरे नभ के और सारे के सारे 

नहीं चाहिए 
ये  पवन भौचक्का  
बस दे दो एक हल्का सा झोंका 
बहती हो जिसमे सुगंध समीर 
स्पर्श जो कर दे मन अधीर 

नहीं चाहिए 
ये उपवन का बाज़ार  
बस दे दो एक पुष्प का  उपहार 
करता हो जो अनुपम अलभ्य श्रंगार 
दर्शन मात्र भर दे आनंद अपरम्पार    

नहीं चाहिए 
ये प्रेम का अनुचित व्यव्हार  
बस दे दो एक क्षण का अनुचार 
करता  हो जो शीतलता का प्रसार 
फिर चाहे भर दे हृद्य  में अनुकांक्षा  अपार  
 
रामकिशोर उपाध्याय 

Saturday, 3 August 2013

बस यूँ ही



!!!!!बस यूँ ही !!!!!

कल किसी मित्र ने प्रेम की अभिव्यक्ति पर अपनी टिपण्णी देते हुए लिखा कि ' बड़ा बकवास लिखा और कुछ नया लिखये ' .पढ़कर बुरा तो अवश्य लगा . फिर भी सोच कर कुछ यह नया लिखने का प्रयास किया परन्तु प्रेम की अभिव्यक्ति से मुक्त नहीं हो पाया . आप भी कुछ राह सुझाये !



हुस्न और इश्क बहुत हुआ पर तन्हाई की बस्ती में रहते हम अकेले हैं
रुखी सूखी खा पीकर टूटी खाट पे सो जाये  जो हम वो मस्त अलबेले हैं

गुलों की खुशबू , मस्त पवन ,झूमते भंवरे , रूठती रमणी से लेना क्या
दिन भर खटके, बू से भीगके,जिस्म तुडाके देता मालिक तब दो धेले हैं

क्या ज़ज्बात, क्या खयालात,क्या अरमान,क्या तिश्नगी और बेवफाई
जल्दी उठना, धूप में जलके चांदनी ओढ़ना  बस यूँ ही जीवन को ठेले हैं

Ramkishore Upadhyay








उन्वान ' तन्हाई '  --- मैं ,,,,,हूँ ,,,,ना 

तन्हाई में हम क्या कर बैठे
बेवजह उनसे दिल लगा बैठे 

बुत होते तो शायद सुन लेते  
राह के पत्थर  खुदा बन बैठे  
 
रामकिशोर उपाध्याय 
3.8.2013
छोड़ बैठे हम !
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खुदा को छोड़ बैठे हम  
जब नाखुदा ने डरना नहीं कहा

साहिल से लड़ बैठे हम
जब लहरों ने फैलना  नहीं कहा

अश्कों से रूठ  बैठे हम
जब आँखों ने बहना नहीं कहा

मंजिल से चिढ बैठे हम
जब पवन ने रुकना नहीं कहा

पाबन्दी को तोड़ बैठे हम
जब कल्पना ने सीमा नहीं कहा

Ramkishore Upadhyay

Friday, 2 August 2013

आज कल देखा

आज सूरज को लम्बे डग भरते देखा
जब शाम को चाँद ने उसे घूरके  देखा

जब सितारों  ने सुबह को उगते देखा 
तब चंद्रमा को कोटर में छिपते  देखा

सृष्टि को जंतु  जगत को रचते देखा
वन में पुष्पों को पल्लवित होते देखा

पत्तों पे ओंस  को मोती बनते देखा
संध्या काल में फूलों को गिरते देखा 

आशा को घोर निराशा  मिटाते देखा
उत्कोच को  अपेक्षा में बदलते  देखा  

जीवों को इस कालचक्र में जीते देखा
इसी क्रम में कालकलवित होते देखा 

रामकिशोर उपाध्याय