Tuesday, 20 August 2013


मान -न- मान

अमावस में भी कभी चाँद जाता है निकल    
आनंद  में जैसे दर्द बह जाता हैं  अविकल

उच्च शिखर के समक्ष होते हैं  नत, परन्तु
प्रेम से घृणा का ताल,,  हो जाता हैं निर्मल  

बड़ी बड़ी ज्ञान की बातें बनाती नहीं सफल
पुजता वही जो पराजय को जाता है निगल

ठन्डे कमरे ले जाते नही किसी लक्ष्य पर
पाता वही उसे, जो धूप में जाता हैं निकल      

वक्र ग्रीवा,कटु जिव्हा करती हैं, भयभीत  
मान पाए,,परपीड़ा में जो जाता हैं पिघल 

राम किशोर उपाध्याय

  

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