Thursday, 22 August 2013

तेरा हुस्न
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कल तुम्हारे हुस्न की बात जब होठों से फिसली, 
सितारों से रात में एक बारात चुपके से निकली. 
चाँद को बनाकर दूल्हा चमकी कड़क के बिजली,
शरमाये फूलों ने कहा हमसे भी भली है ये कली.

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आने की खबर लगता आसमान को हो गयी
सुबह सूरज तुझे मेरे बिस्तर में ढूंढ रहा था

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फूल और तुम
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तुमसे जुदाई को बयां हम नहीं कर सकते
बड़े पुख्ता ख़त से लिखी जो ये तकदीर में

घर के फूलों में तेरा अक्स देखते हैं अक्सर
बडी खुलके हंसी थी जब दिल-ए तस्वीर में
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