Saturday, 17 August 2013


लेलो मेरी यह कश्ती और मेरा पतवार भी
जब डूब ही जाना हैं तेरी आँखों के भंवर मे

ना हिज्र का शिकवा रहेगा और ना वस्ल की आरजू
हम फ़ना होने को बेजार हैं तू उठा तो सही शमशीर 

रामकिशोर उपाध्याय 

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