Saturday 13 June 2020

संस्मरण ,,,,,,,,,,,,,गीदड़ को शेर बनाने का इंजेक्शन


उस जमाने की बात है जब मैं रेलवे अधिकारी फेडरेशन का एक अदना सा पदाधिकारी हुआ करता था।फेडरेशन एक पत्रिका भी निकालती थी ,सो उसके संपादन का काम भी मुझे दे दिया गया। रेलवे अधिकारियों के एक समूह की समस्याओं के निराकरण के सिलसिले में चैयरमैन रेलवे बोर्ड और रेल मंत्री से अपने बड़े पदाधिकारी के साथ मिलने भी कभी कभार जाना पड़ जाता था। अपनी जोनल रेलवे के महाप्रबंधक से तो अक्सर मिलते ही थे। अधिकारियों और कर्मचारियों की वाजिब समस्याओं और मांगों के निपटान हेतु रेल मंत्रालय की एक विशिष्ट नीति और प्रक्रिया है। उसी के तहत हम लोग कार्य भी करते थे और अन्याय का विरोध भी करते थे। आप यह सोच रहे होंगे कि अधिकारी तो स्टाफ को ही कष्ट देता है,खुद कभी कष्टमय या समस्याग्रस्त कैसे हो सकता है। सारे कानून ,कायदे तो अधिकारी ही बनाते है। मगर दोस्तों ऐसा सोचना सरासर गलत है। अधिकारी भी अपने प्रमोशन,नियुक्ति और जनहित में आवश्यक अन्य सुविधाओं के लिए उद्वेलित होते रहे हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है। किसी जमाने में आपने एक आईएएस अधिकारी का केस तो सुना होगा जो बोट क्लब पर भूख हड़ताल तक पर बैठ गया था। यह बोट क्लब धरने और रैलियों के लिये तो कब का बन्द हो चुका है।सिर्फ सैर सपाटे के लिये यह जगह अब रह गई है। ज्ञातव्य हो यह बोट क्लब कभी भारतीय लोक की तंत्र के सामने अपनी बात रखने का एक प्रमुख तीर्थ था। कई विशाल रैलियां मैंने यहाँ देखी, जिन्होंने सत्ता में परिवर्तन तक किया। अतीत में हम लोगों ने कई बार इस बोट क्लब,बाद में जंतरमंतर और रेलवे के मुख्यालयों पर धरना दिया। एक बार तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के द्वारा रेलवे के पास और पीटीओ को आय में शामिल करने के तुगलकी फरमान के खिलाफ पूरी भारतीय रेलों और उत्पादन इकाइयों के गैंगमैन से जनरल मैनेजर तक धरने पर एक साथ बैठे ,यह भी इतिहास इस देश में बना। एक बार रेल मंत्री के द्वारा रेल दुर्घटना के विषय में एक महाप्रबंधक के गैर जरूरी स्थानांतरण पर लंबा मार्च भी निकाला। काली पट्टी बांधकर तो बहुत बार काम किया। पदाधिकारियों के लिए यह करना आम बात है,किन्तु रेलवे की उत्पादन क्षमता और यात्री तथा माल परिवहन को कभी प्रभावित नहीं होने देते। और न ही आपने सुना होगा कि रेलवे अधिकारियों के आंदोलन के कारण रेल यातायात बन्द हो गया। यह बड़ा ही अनुशासित कैडर है। रेल मंत्रालय नियमानुसार वर्ष में दो बार रेलवे अधिकारी फेडरेशन की कार्यकारिणी को बैठक करने की इजाज़त देता है। इन बैठकों में फेडरेशन की गतिविधियों पर गम्भीर चर्चा होती है और भविष्य की रणनीति बनाई जाती है। उस समय श्री सुशील कुमार बंसल हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। बंसल साहेब शुरू से ही अपने जुझारूपन के लिए विख्यात है। 75 बसंत देख चुके बंसल साहेब में यह जज्बा आज भी कायम है। बंसल साहेब 2005 में सेवा निवृत्त हो गए ,किन्तु अधिकारियों और पेंशनरों के हित में आज भी पूरी तरह सक्रिय है। सभी संगठनों को उचित सलाह देने में कभी नहीं चूकते है,भले ही कोई बुरा मान जाए । वे अलोकप्रिय होने की हद तक जाकर अपनी बात कहते है। हम लोग उनको पितातुल्य सम्मान देते रहे और उनके डांटने फटकारने का बिल्कुल बुरा नहीं मानते ।मुझे तो आज भी उनसे पुत्रवत स्नेह मिलता है।
सन 2003 में फेडरेशन की एक बैठक त्रिवेंद्रम में आहूत की गई ।इसमें सभी रेलवे के नामित पदाधिकारियों ने भाग लिया। त्रिवेंद्रम को अब तिरुवनंतपुरम कहते हैं।यह भारत के सुदूर दक्षिण राज्य केरल की राजधानी है। यहां का कोवलम बीच सबसे सुंदर है। यहां समुद्र का जल गहरा नीला साफ सुथरा है जिसमें आप मछलियाँ और अन्य जैविक संपदा स्पष्टरूप से देख सकते है। इस शहर की रमणीकता और दक्षिण रेलवे अधिकारी संगठन की इच्छा पर यह शहर बैठक के लिये चुना गया।राजधनी एक्सप्रेस से हम यहाँ पहुंचे । लम्बी यात्रा की थकान और पूरे दिन की व्यस्त बैठक के बाद हम जल्दी ही सो गए। अगले दिन सुबह हम कुछ अधिकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुशील बंसल के ऑफिसर्स गेस्ट हाउस में अलोटेड कमरें में उस दिन होने वाली कार्यवाही की चर्चा करने हेतु धमक गए । एक युवा अधिकारी ने उनसे पूछा कि सर रेल प्रशासन से आप कार्य किस तरह निकलवा लेते हो,हमें भी कुछ समझाओ । बंसल साहेब इस विषय मे अपना एक अनुभव शेयर कर रहे थे। तभी एक जोनल रेलवे संगठन के अध्यक्ष (मेरे मित्र है अतः नाम लिखना नहीं चाहता। वैसे भी व्यक्ति नहीं विषय का अधिक है।) ने कहा कि बंसल साहेब हमारी तो महाप्रबंधक के सामने जाते ही घिग्गी बन्ध जाती है ।क्या करें? बंसल साहेब थोड़ा सपाट बयानी करते हुए (और इसी कारण अलोकप्रिय होने का आरोप झेलते हैं)।कहने लगे कि भाई हिम्मत तो खुद ही जुटानी पड़ती है। चुने हुए पदाधिकारी हो । नेतृत्व करना आसान काम नहीं होता है। उसे वर्गहित में साहसी,जुझारू और संघर्षशील होना ही पड़ता है,वरना उसको न तो शासन /प्रशासन सम्मान देता है और न ही उसका कैडर इज्जत करता है। और भाई,अभी तक गीदड़ को शेर बनाने का इंजेक्शन ईजाद नहीं हुआ है,वरना तुम्हें अभी लगा देता । यह सुनकर उनके कमरे में हंसी का फव्वारा फूट पड़ा। हमारे मित्र का चेहरा तो देखने लायक था। बंसल साहेब भी हँस पड़े और बाद में उस अधिकारी का ठीक से पुत्रवत मार्गदर्शन किया।
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रामकिशोर उपाध्याय

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