Tuesday 31 July 2018

राजपथ


*
सूखती रहे खेत में फसल
सूखती रहे माँ का वक्षस्थल
सत्ता की गाय को दुहते रहे अर्थकामी मध्यस्थ
धन्य है इस धरा का जनपथ .......
*
सुमन की लुट रही सुगंध
वतन की टूट रही सौगंध
शासकों को उचित अब यही कि शूल उपवन के छाँट मत
यही है आधुनिक राजपथ ........
*
धर्म की धुंधली होती रहे ज्योति
कृषक देते रहे नित्य प्राणाहुति
बीमे के राशि पर सत्ता मांग रही जनमत
धन्य है इस धरा का जनपथ .......
*
कोख सूनी धरा की
पास पूंजी जरा सी
बढ़ते अपराध को भूख की वजह मान मत
यही है आधुनिक राजपथ ....
*
दिवास्वप्न सब छल गये
गर्व के शिखर सब गल गये
भाषणों के चक्र पर ही चल रहा सत्ता का कीर्तिरथ
धन्य है इस धरा का जनपथ .......
*
पुष्ट हाथ को काम मांग रहा नौजवान
हतशीर्ष सैनिक ढूंढ रहा स्वाभिमान
राष्ट्रों की कृत्रिम रेखा है मानव -शोणित से लथपथ
यही है आधुनिक राजपथ ....
*
फडफडा रहा है खुली हवा में हर परिंदा
बिन जुबा के लाश में बदल रहे है जिन्दा
छोड़कर पगडंडियाँ, लपक रहा राज्य धन का वायुपथ
धन्य है इस धरा का जनपथ .......
*
देह पर धारण है वस्त्र प्रभु का
कर तिरोहित अग्नि उदर की ,ध्यान हो रहा विभु का
प्यालों में देश ढल रहा ,इधर उधर देख मत
यही है आधुनिक राजपथ ....
*
समता की क्रांति अब बुझ रही
डाह,प्रमीति धरा पर झुक रही
रक्त -रंजित है मानवता,मरणासन्न धम्म्पथ
धन्य है इस धरा का जनपथ .......
*
बह रही है नदी स्वार्थ की
मिट रही है सदी परमार्थ की
अर्थ के अन्धमार्ग के अनुगमन से जीवन है प्रमथ
यही है आधुनिक राजपथ ....
*
दंभ का हो तर्पण ,अहम का निष्क्रिय हो छद्म आवरण
सुबुद्धि करे वंचित का संभरण, शुद्ध हो धर्म का आचरण
तम मिटे ,उर खिले और मिटे क्रूर राजपथ
मिलकर करे जयघोष,ऐसा हो जनगण का जनपथ
*
रामकिशोर उपाध्याय
31 जुलाई 2018