स्मृति का दंश
आत्मा को ऐसे पीड़ित करता है
जैसे कोई कठफोड़वा
अपने स्थायी निवास हेतु
वृक्ष के तने को निरन्तर ठोकता रहता हैं
अपनी नुकीली चोंच से........
आत्मा को ऐसे पीड़ित करता है
जैसे कोई कठफोड़वा
अपने स्थायी निवास हेतु
वृक्ष के तने को निरन्तर ठोकता रहता हैं
अपनी नुकीली चोंच से........
रामकिशोर उपाध्याय
स्मृति का दंश
आत्मा को ऐसे पीड़ित करता है
जैसे कोई कठफोड़वा
अपने स्थायी निवास हेतु
वृक्ष के तने को निरन्तर ठोकता रहता हैं
अपनी नुकीली चोंच से........
वाह बहुत सुंदर कविता है
आदरणीय रामकिशोर उपाध्याय जी
साधुवाद और मंगलकामनाएं !
आदरणीय बन्धु, सराहना के लिए ह्रदय से आभार
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