Monday, 8 May 2023

था एक वादा

उनकी याद में
***************
साथ चलते -- चलते क्यूँ फासले हो गये
पास रहते -- रहते क्यूँ हादसे हो गये
*
था एक वादा फलक तक साथ चलने का
एक आँधी चली के अलग काफले हो गए
*
आँखों में बसती थी फूलों की एक बगिया
अब तो इस भवरे को इतराए ज़माने हो गए
*
रुत बदली और बदला गया मिजाज़ मौसम का
अब तो तारों के गाँव में धूप से उजाले हो गए
*
सुनाती थी उनकी साँसें एक सरगम
क्या कहें के सुर और साज बेगाने हो गए
*
न गुनाह मेरा था न ही उसका था कोई
न जाने क्या हुआ के खफ़ा बुतखाने हो गए
*
दिल रोता है आज भी महबूब की याद में
मत पूछो अब किस्सा, ये जख्म पुराने हो गए
-------------
रामकिशोर उपाध्याय


12 comments:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (११-०५-२०२३) को 'माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए'(अंक- ४६६२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  2. था एक वादा फलक तक साथ चलने का
    एक आँधी चली के अलग काफले हो गए
    वाह!!!

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर गज़ल।
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ मई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर उम्दा ग़ज़ल।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर

    ReplyDelete