Thursday, 18 May 2023

अहम पहाड़ सा


भगवान से वरदान पाये 

मनुष्य का कद 

अकसर बढ़ने लगता है 

अनियंत्रित होकर 

विंध्याचल पर्वत की भाँति 

और रोकने लगता है 

आने से दूसरों के जीवन में प्रकाश 

फैला देता है अंधकार का साम्राज्य 


लेकिन तभी कोई आता है 

लोगों के जीवन में उजाला लेकर 

और युक्ति से प्राप्त कर लेता है पर्वत से 

और न बढ़ने का आश्वासन 

अगस्त्य ऋषि बनकर 


जब -जब अहं बढ़ता है 

विंध्य पर्वत सा 

तब -तब कोई न कोई आ ही जाता है 

बिलकुल ज़रूरी नहीं वह कोई एक ऋषि हो 

अक्सर साधारण से लगने वाले 

मनुष्यों का समूह  भी तोड़ देता है 

पहाड़ सा दर्प 

किसी वरदान पाये मनुज का भी 

चाहो तो इतिहास या वर्तमान को पढ़ लो 

किसी ने ठीक ही कहा !!

*

रामकिशोर उपाध्याय

Monday, 8 May 2023

था एक वादा

उनकी याद में
***************
साथ चलते -- चलते क्यूँ फासले हो गये
पास रहते -- रहते क्यूँ हादसे हो गये
*
था एक वादा फलक तक साथ चलने का
एक आँधी चली के अलग काफले हो गए
*
आँखों में बसती थी फूलों की एक बगिया
अब तो इस भवरे को इतराए ज़माने हो गए
*
रुत बदली और बदला गया मिजाज़ मौसम का
अब तो तारों के गाँव में धूप से उजाले हो गए
*
सुनाती थी उनकी साँसें एक सरगम
क्या कहें के सुर और साज बेगाने हो गए
*
न गुनाह मेरा था न ही उसका था कोई
न जाने क्या हुआ के खफ़ा बुतखाने हो गए
*
दिल रोता है आज भी महबूब की याद में
मत पूछो अब किस्सा, ये जख्म पुराने हो गए
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रामकिशोर उपाध्याय


कमल का एक फूल
(कहानी)

                                                -रामकिशोर उपाध्याय

मैं रोज की तरह पार्क में  घुमने आया. आते ही, राजन जो मेरा सहकर्मी था, को देखा कि  उस दिन राजन कही अन्दर से उदास क्यूँ था. परन्तु राजन ने अपना दैनिक क्रम को ना तोड़ते हए प्रातः   कालीन तालाब का भ्रमण जारी रखा. उसको यूँ उदास देखकर मैंने प्रश्न किया कि भाई आज उदास क्यों लग रहे हों.राजन बोला कि मित्र अबसे दो साल पुरानी बात हैं जब मैं यहाँ पर नया -नया आया था। इस पार्क में घूमने की एक कहानी हैं.आओ जब बात चल ही पड़ी हैं तो मै आपको सुना ही देता हूँ और कहकर राजन ने कहना आरम्भ किया।

पहले भी यहाँ कमल खिला करते थे।  कमल का पुष्प मुझे बहुत प्रिय हैं. एक दिन मैंने देखा कि तालाब में खिला एक मात्र कमल का फूल भी मुरझा गया था. अक्सर ही  ताजे खिलते हुए फूल पार्क के तालाब में मेरा स्वागत करते थे. मैं कुछ सोच ही रहा था कि पता नहीं  तभी अचानक एक महिला  भ्रमण पथ पर उसके पीछे पीछे तेजी से पास आई. मुझे लगा कि वह कुछ कहना चाहती ,परन्तु वह साहस नहीं जुटा पा रही थी.

'क्या बात है, मैडम? मैंने उसकी व्यग्रता को भांप पूछ ही लिया।

कुछ नहीं,’ उसने उत्तर दिया.

परन्तु तुम  जिस तेजी से मेरे निकट आई,मुझे लगा कि तुम जरुर कुछ कहना चाहती होमैंने पुनः पूछा .

हां, तुमने ठीक पहचाना,’ महिला ने उत्तर दिया.

बोलो, क्या कहना चाहती हो,’मैंने  प्रश्न किया.

इस छोटे  भ्रमण-पथ  को छोड़ कर पार्क के किनारे बने रास्ते पर चले,यहाँ कई परिचित लोग आस-पास से गुजर रहे हैं,’ महिला ने आग्रह किया.

मैं और इंतज़ार न कर , पार्क के किनारे बने रास्ते की और चल पड़ा. वह महिला भी एक चक्कर के बाद मेरे निकट आ गयी . सुबह के उस समय उस जगह पर  अधिक ओस होने के कारण लोग कम ही उधर आते थे ,यह सोचकर कि  जूते गीले न हो जाये. छोटे शहरों में भी लोग अब अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो गए हैं. 

मेरा नाम रीना हैं. मैं राधा की सहेली हूँ,’ वह बोली.

कौन राधा ?’

'कौन राधा' और 'आप कौन है?' मैंने  प्रश्न किया.

'मै राधा की सहेली रीना हूँ और राधा वही महिला है जो पार्क में आपके साथ सुबह सैर में चक्कर लगाती थी, अब कुछ समझ आया,' वह बोली.

मेरे साथ नहीं . हां, एक महिला मेरी विपरीत दिशा में अवश्य  चक्कर लगाती थी सुबह सुबहमैंने  बताया .

अरे हां, वही , उसी का नाम राधा था,’ रीना ने कहा और अब वह घूमने नहीं आयेगी.

परन्तु मुझे क्या लेना इस बात से,’ मैंने  कहा.

परन्तु उसे लेना देना था ,’ रीना ने कह कर बात आगे बढाई. 'सरराधा के पति का ट्रान्सफर हो गया है वाराणसी और वह कल चली गयी है'

'
मैं तो नहीं जानता,'  मैंने  कहकर अनजान बनने की कोशिश की. 

क्या आपको नहीं पता?’रीना ने पूछा.

नहीं,मेरी कभी उससे कोई बात नहीं हुयी,’ मैंने बताया.

यही तो आप जैसे पुरुषों में कमी हैं कि आप महिलाओं  की भावना को नहीं पहचान पाते हैं. वह महिला एक वर्ष से आपके निश्चित समय पर आपके उलटी दिशा में भ्रमण करती रही और आपने कभी जानने या अनुभव करने का कोई प्रयास नहीं किया कि वही क्यों आंधी,तूफान,बारिश, कोहरे में आपके समय पर ही क्यूँ परिक्रमा करती थी. वह आपको चाहने लगी थी ,श्रीमान जीआप उसे अच्छे लगते थे.वह परिक्रमा विपरीत दिशा में इस लिए करती थी एक चक्र में दो बार आपको देख सके.रीना ने कहा.

अच्छा ऐसा था क्या ,’मैंने  फिर अजनबी बनने की कोशिश की.

हां, वह आपसे प्रेम करने लगी थी और कल जाने से पहले मुझे यह कहकर गयी है कि राजन साहब की बता देना कि वह अपनी सेहत का  पूरा ध्यान रखे और घूमना नियमत जारी रखे. इससे उनका ब्लड शुगर ठीक रहेगा.रीना ने बताया.

मै भौचक्का रह गया कि वह मेरे बारे में इतना कुछ जानती थी और इतनी चिंता करती थी और जाने के बाद भी कर रही हैं. और क्या बताया उसने मेरे बारे में,’ यह कहकर मैंने  अपनी जिज्ञासा प्रकट कर दी.

तुम जब पिछले साल जब इस शहर में ट्रान्सफर होकर आये थे और एक दिन तुम डाक्टर के पास अपना चेकअप कराने गए थे ,राधा भी उसी समय डाक्टर के पास अपने किसी दूर के रिश्तेदार को दिखाने डाक्टर के पास आई थी. याद होगा कि डाक्टर ने आपसे पूछा था कि आप अकेले रहते है या परिवार के साथ . आपने उन्हें बताया था कि आपका पूरा परिवार कानपुर  ने रहता है,आपके बच्चे कालेज में पढ़ते हैं अतः पत्नी साथ नहीं रहती हैं. डाक्टर ने कहा कि आप शायद अकेले में कुछ ज्यादा ही सोचते हैं और शायद इसी वजह से भी कभी कभी ब्लड शुगर बढ़ जाता हैं. आपको दवाई के साथ यह भी सलाह दी कि आप नियमित रूप से ३०-४० मिनट रोज घूमे .यह कंट्रोल हो जाएगी,एकाकीपन भी इसका एक कारण हो सकता हैं क्योंकि ज्यादा सोचने भी यह प्रभावित होती हैं.आप जब कमरे से निकले तो राधा ने आपको भरपूर देखा ,परन्तु आपने यह नोट नहीं किया था और आप चुपचाप निकल गए . पता नहीं आप उसे क्यों इतने अच्छे लगे, हालाँकि वह शादीशुदा थी,’ कह कर रीना चुप हो गयी.

और क्या बताया?’ मैंने जिज्ञासा प्रकट की.

यह कहकर राजन भी चुप हो गया. मैंने राजन से आगे की बात बताने को कहा. मुझे उसकी कहानी में रस आने लगा था. राजन ने कहा कि आज उसका मूड ठीक नहीं हैं।  शायद वह एक पीड़ा से गुजर रहा था , एक ऐसी पीड़ा जो उसने भोगी नहीं थी हां वह कैसी हो सकती थी का अवश्य ही  अनुभव कर रहा था. मैंने ज्यादा कुरेदना उचित नहीं समझा और राजन से सहमत होकर अगले दिन की प्रतीक्षा करने लगा. अगले दिन राजन ने फिर वही से बताना शुरू किया जहाँ से रीना ने छोड़ा था.

डाक्टरी सलाह के मुताबिक आपने अगले दिन से नियमित घूमना चालू कर दिया था. परन्तु आप कभी 10 तो कभी 15 मिनट ही घूमते थे और कभी बिलकुल भी नहीं. यह पार्क राधा के पति के घर के निकट था , वह आप पर नज़र रखे थी. यही से आप के रोज दर्शन करती थी, जब आप नहीं आते तो उसे अच्छा नहीं  लगता था. वह दिन उसका बहुत बुरा गुजरता था वह चिडचिडी हो जाती थी. वह यह नहीं चाहती थी कि आप अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरते,’ राधा कहे जा रही थी.

शादीशुदा होकर भी राधा बिलकुल अकेली थी.वह दो बच्चों की माँ थी. मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट थी.सामाजिक कार्यों में अपार रूचि रखती थी. दूसरों को समझना और उनकी समस्याओं का हल खोजने में उसे आनंद आता था.परन्तु यह कोई पूर्णकालिक कार्य तो नहीं था. उसका पति शैलेश पेशे से इंजिनियर था परंतु मानवीय संवेदना से पूर्णतया अनभिज्ञ.वह अपने प्रोजेक्ट पर काम करता रहता और देर से घर लौटता था. पैसे कमाने का और लोगो से आगे निकलने का जूनून उसमे कूट-कूट कर भरा था.शायद समय से स्वयं को आगे रखने का गुण उसके रक्त में था. उसे कोई व्यसन नहीं था ,शराब से कोसों दूर, पान सिगरेट के स्वाद का उसे पता नहीं था.राधा जब भी स्वयं को व्यस्त करने के लिए कोई काम करने के लिए कहती तो वह हमेशा एक ही बात कहता था कि वह अच्छा कमा रहा हैं तो उसे काम करने की क्या जरुरत हैं और वह हर बार समझाने की कोशिश करती थी.वह विरोध का कोई भी स्वर नहीं सुनना चाहता था. वह दमनात्मक प्रवृत्ति का व्यक्ति था. उसका पति कभी नहीं समझ सका कि मानव की धन के इतर भी कोई आवश्यकता होती हैं, स्वयं के निरंतर विकास और विस्तार की, सामाजिक सरोकारों के प्रति व्यक्तिगत चेतना की.वह विवाद न बढे इसलिए चुप रह जाती.वह जानती थी कि इससे उसके बच्चों पर कुप्रभाव पड़ेगा और असहाय हो वह बच्चों की परवरिश में ही लीन रहती. पति के लिए वह भोग हेतु एक जिन्दा सुन्दर शरीर और मनोरंजन का साधन मात्र थी.यंत्रवत काम करते करते वह दो बच्चों की माँ बन गयी थी.कहकर रीना रुक गयी और मेरी धड़कने इतनी तेज हो गयी कि सामने वाला भी सुन सके .   

यह तो सरासर अन्यायपूर्ण व्यवहार था शैलेश का,’ कहकर मैंने  बात आगे बढाई.

राजन ने मुझे बीच में बात रोककर बताया कि उस समय वह सोचने लगा कि वह एक बेहद जिम्मेदार व्यक्ति था. वह अपने बच्चों,पत्नी, नौकरी और समाज के प्रति सच्ची निष्ठा रखता था. उसे शैलेश का व्यवहार खटक रहा था. परन्तु उसकी अपनी पत्नी भी तो उतनी चिडचिडी थी, उसके इलाहबाद पोस्ट होने के बाद वह स्वयं कभी फोन नहीं करती थी।फिर राजन अपनी और से कभी उसे शिकायत का मौका नहीं देता था. वह हर वीक-एंड में घर जाता और घर का सारा सामान, हर छोटी-बड़ी जरुरत पूरा करके आता ताकि उसके पीछे कोई समस्या शालिनी को न हो. सरकारी काम को वह मन लगा कर करता वर्ना घर से बाहर नियुक्त कर्मचारी सदैव अपने घर का रोना रोते और काम से बचने का बहाना ढूंढते रहते। वह शैलेश के व्यवहार को स्वयं के मानदंडो पर रख के आकलन कर रहा था।      

राजन ने आगे मुझे सुनाया वह बहुत चौकाने वाला था. राजन ने रीना के कहे वाक्य दुहराने शुरू किये।

जी हां,राधा एक बेहद संवेदनशील और भावुक महिला थी.वह अपनी और से किसी को कष्ट नहीं देना चाहती थी, भले ही खुद कितनी ही तकलीफ उठा ले. कई बरसों से पति के व्यवहार के कारण उसका प्रेम का सागर सूखने  लगा था परन्तु ऊपर से सदैव सह्रदयता का आवरण ओढ़े रही. अचानक आपको देखकर उसके सुसुप्त मन में प्रेम का स्फुरण हो आया. उसका आपके प्रति एक नवयौवना का प्रेम नहीं जिसमे शारीरिक आकर्षण था,बल्कि एक प्रौढ़ और परिपक्व का मर्यादा में बंधा प्रेम. वह कोई शारीरिक तुष्टि की आकांक्षा से प्रेम नहीं खोज रही थी आपमें. वह एक ऐसे प्रेम का प्रतिमान को सृजित कर रही थी जो पुस्तकों में उपलब्ध नहीं, वह एक स्वयं पर अभिनव प्रयोग कर रही थी.कहकर  रीना ने बात समाप्त की और अगले दिन शेष बातें करने के लिए कह पार्क से बाहर की और मुड गयी' मैं अवाक् रह गया था.

उस रात मुझे नींद ठीक से नहीं आई.रातभर वह करवटें बदलता रहा और राधा के विषय में सोचता रहा कि वह कैसी महिला था जो ना कभी मिली , ना कुछ बोली, बस प्रेम करती रही. ऐसा प्रेम तो उसकी शालिनी ने भी कभी व्यक्त नहीं किया,यद्यपि वह एक सम्पूर्ण माँ का रोल अच्छे से करती रही हैं. मैं  जल्दी ही बिस्तर से उठ गया और सुबह की दैनिकचर्या निपटा कर 6 बजने की प्रतीक्षा करने लगा था. समय काटना भारी लग रहा था,प्रथम प्रेम जैसी व्यग्रता थी उसमे. घडी ने ठीक छ: बजाये और पार्क की और निकल पड़ा.जहाँ थोड़ी देर बाद ही रीना उसे मिल गयी और उसने शेष बाते बताने को कहा.

जब उसने देखा कि आप नियमित सैर नहीं कर रहे तो उसने इसे स्थायित्व प्रदान करने का मन मनाया . वह जानती थी कि पुरुष कितना भी कठोर दिखता हो अन्दर से कोमल और स्त्री के प्रति आसक्ति का भाव जरुर रखता हैं.वैसे सामान्य स्त्री का मनोविज्ञान भी  उसे यह पहचानने में कभी विफल नहीं करता की सामने वाले पुरुष कि नियत क्या हैं और वह किस भाव से देख रहा हैं, उसकी आँखों में वासना हैं, वात्सल्य हैं या फिर शुद्ध प्रेम. उसने  स्वयं इस बात को जानने का प्रयास किया कि आप उसकी तरफ ध्यान देते है  नहीं ? एक दिन आपसे ठीक दस मिनट के बाद वह आपके ट्रैक पर आ गयी परन्तु विपरीत दिशा में जिससे वह आपको और आप उसे ठीक से देख सके. पहले दिन वह आपको देख मुस्कराई ,जब आप भी मुसकराए तो वह आश्वस्त हो गयी की आप भी कही ना कही आकर्षित हैं, उसने निर्धारित समय पर पूरे चालीस मिनट का चक्कर लगाने का निश्चय किया . वह अब सुबह की सैर पर जाने लगी.बच्चों को स्कूल भेजकर वह घूमने आ जाती थी.पडोसी हैरान थे कि राधा भी सैर को जाने लगी. परन्तु आपने एक बात नोट की होंगी कि  राधा आपके बार बार चाहने के बावजूद फिर नहीं मुस्कराई और आप चक्कर पे चक्कर लगते रहे कि वह फिर से मुस्कराए.कहकर रीना चुप हो गयी.

राजन ने मुझे बताया कि उस अगले दिन उसे क्या सूझा कि वह  रीना से यह पूछ बैठा।

'रीना, यह बताओ कि तुम राधा को मना नहीं कर सकती थी कि आपसे यह कटु सत्य बताया ना जायेगा। क्या कारण हैं कि आपने यह सब किया?

'राजन, मैंने स्वयं राधा से कहा था कि यह मुझसे नहीं होगा। राधा के बार-बार आग्रह के बाद मैं सहमत हो गयी.एक कारण और भी हैं.' कहकर रीना चुप हो गयी.

' अरे चुप क्यों हो गए आप? मैंने कहा.

'राजन, मैं एक तलाक शुदा हूँ.मेरा पति शराबी था , रोज पी कर आता और भद्दी-भद्दी गलियां देता. मैं पुरे दिन एक विद्यालय में अध्यापक का कार्य करती,प्राइवेट स्कूल था. मात्र तीन हज़ार पगार मिलती थी. मेरा एक पांच साल बेटा था. जब हमारी शादी हुयी तो उसके माँ बाप ने बताया कि वह प्राइवेट कंपनी मेनेजर है. दस हज़ार पगार पाता हैं. देखने में सुन्दर था. मेरे मातापिता उस पर लट्टू हो गए. परन्तु वह सब झूठ था.वह कुछ नहीं करता था. शादी के बाद मुझे यह सब पता चल तो मैं टूट कर राह गयी, परन्तु इस कहावत 'बिंध गया सो मोती, राह गया सो पत्थर' को स्वीकार कर जीवन से संघर्ष करने लगी. इसी बीच मुझे एक बच्चा हो गया, मैं और मजबूर हो गयी उसके साथ जीने को. एक दिन शराब के नशे में उसने मुझे बहुत पीता और अधमरा करके छोड़ दिया। बस उसी दिन मेने सोच लिया कि जुल्म और नहीं सहना है.मेरे माँ बाप ने मुझे अलग ना होनेके लिए बहुत समझाया परन्तु मैं निश्चय कर चुकी थी. मैंने तलाक की अर्जी दी और दो साल में मुझे तलाक मिल गया.मैं एक बार फिर चौराहे पे खडी थी. एक सामाजिक संस्था की शरण ली. वहां मेरा परिचय राधा से हुआ. वह काउंसलिंग देती थी.धीरे -धीरे मेरा आपने प्रति विश्वास बढ़ता गया.और आज मैं स्वावलंबी हूँ. मैं प्रेम की पीड़ा को समझती हूँ. राधा तो विद्रोह नहीं कर पाई.पर उसने स्वयं को विस्तृत करने का कार्य किया। हम जैसे अनेक लोगो के जीवन को संवारा। मैं अब सामाजिक संस्था में काम भी करती हूँ.मैं राधा के संपर्क में आयी तो बस उसकी बनके रह गयी.राधा ने मुझे जीवन को सँवारने का संबल दिया, जीने का नया अर्थ दिया। मैं उसकी ऋणी हूँ, शायद यह उसकी मदद करके मैं उपकार का कुछ प्रतिफल उसे इस रूप में देना चाहती थी.' कहकर रीना ने अपनी व्यथा और ऋण का जिक्र किया.

'रीना, तुम महान हो, तुम्हे नमन'.मैंने उद्गार व्यक्त किये। और रीना को अगला प्रश्न किया।
यह तो बताओ कि वह क्यों नहीं मुस्कराना चाहती थी,’ 

तुम्हे लगता हैं उसे मुस्कराना चाहिए था ?’ रीना ने प्रश्न किया.

हां, जरुर , जब आप किसी को पसंद करते हो,प्रेम करते हो तो इसमें क्या बुराई हैं. मैं तो इससे आगे की सोचता था कि वह मुझे प्रेम का मौखिक निमंत्रण देंगी.आपकी बात सुनकर ऐसा लागत है की वह मुझसे प्रेम ही नहीं करती थी.’ मैंने अपनी बात राखी.

ऐसा नहीं था,वह आपसे प्रेम करती थी. अगर वह मुसकरा देती तो अनर्थ हो जाता. आप उसे खोजने लगते. आपकी  सैर का क्रम टूट जाता. आपकी बीमारी और बढ़ सकती थी.दो व्यक्ति बेकाबू हो सकते थे जिससे दो परिवार टूट जाते.वह अपने प्रेम की परिणिति प्रणय में नहीं आन्तरिक आनंद में खोज रही थी,उसे पाना चाहती थी... वह आपको स्वस्थ देखना चाहती थी. उसके ऐसा करने से आप एक भ्रम में जीते रहे और घूमते रहे कि आज नहीं तो कल मुस्कराएगी .  आपकी सैर का समय एक घंटे का हो गया था.आप बड़े मनोयोग से  घूम रहे थे, यह उसकी सोच का ही परिणाम था . उसकी इस गतिविधि पर मोहल्ले के एक दो लोग भी नज़र रखे थे ,वे उत्सुक थे की वह क्यों इसी समय जाती हैं , कही किसी से चक्कर नो नहीं अपर वह नीची निगाहे किये घुमती रहती थी. एक दिन उसके पति शैलेश ने पूछ ही लिया कि वह पहले तो कभी सैर को नहीं जाती थी अब ऐसा क्या हो गया है. उसने कहा कि किसी ने उसे बताया हैं पार्क के तालाब में कमल के फूल खिलते हैं, मुझे कमल के फूलों से प्रेम हैं,वह बचपन में अपनी वेणी में इन फूलों को लगाती थी. इसके दो फायदे है एक तो कमल देखने को मिलते है दुसरे अब वह 35 को पर कर गयी है इससे पहले की व्याधियां इस शरीर में अड्डा बनाये , सुबह की सैर जरुरी हो गयी हैं ताकि आपकी सेवा हेतु शरीर स्वस्थ रहे. इससे पूरा दिन मन प्रसन्न रहता हैं.शैलेश यह सुनकर उसदिन  पहली बार निरुत्तर हुआ था.

कभी कभी जब वह नहीं आती तो अपने छज्जे में व्यायाम करते हुए आपको देखती रहती थी. वह बिन बताए आपकी पसंद और नापसंद को समझने लगी थी कि आपको कौन  सा रंग पसंद हैं ,उसी का ध्यान रखके ही उसी रंग की साडी या सलवार पहनकर घूमने आती थी.रीना ने बात समाप्त की और अगले दिन शेष बात करने को कह वह तेज़ी से खिसक गयी.

अगले दिन रीना ने फिर बताने के लिए निर्धारित समय पर आई.वह मेरी पसंद के बारे में कैसे जानती थी?’मैंने  उत्सुकता दिखाई.

आपको पहले ही बताया था कि राधा मनोविज्ञान की पोस्ट ग्रेजुएट थी. वह पुरुषों को अच्छे से समझती थी.आप हर महीने डाक्टर से अपना सुगर लेवल चेक कराने जाते थे, वही से वह आपकी अगली डेट का पता लगा लेती थी और आपने रिश्तेदार को दिखाने के बहाने आपके भरपूर दर्शन कर लेती थी. उसे मालूम था कि लगतार सैर और खानपान के नियंत्रण से आपका सुगर लेवल नियंत्रण में आ गया था. डाक्टर भी आपकी इस प्रगति से प्रसन्न था और वह भी.रीना ने बताया.
हां,आपने बिलकुल ठीक कहा,’ मैंने  सर हिलाया.

इस तरह सैर करतेकरते आपको एक बरस हो गया था.राधा भी नियमित रूप से आती रही.पर अब तुम अपनी सेहत के फिक्र में कम राधा की मुस्कान को पाने को ज्यादा ही लालायित रहते. परन्तु अंतिम अवसर पर  आपने एक परिवर्तन देखा होगा उसमे कि वह आपको देख कर मुसकाई थी और आपकी बांछे खिल गयी थी.उसके बाद अपने शायद कई सपने भी देखने भी शुरू कर दिए हो.वस्तुतः यह उसके अलविदा कहने का अंदाज़ था. अब उसके पति का तबादला हो गया हैं और वह वाराणसी चली गयी हैं.रीना ने बताकर मुझे चौका दिया.

क्या,ट्रान्सफर हो गया?’

जी हाँ , उसके पति की पोस्टिंग को दस बरस हो गए थे और अब ट्रान्सफर होना ही था।  अब वह नहीं आयेगी सैर को. पर जाते -२ मुझे सारी बात बता गयी.रीना ने कहा.
परन्तु, उसे मुझे भी बताना चाहिए था.जब वह मुझसे प्रेम करती थी तो इतनी निष्ठुर क्यूँ बनी रही’ मैंने शिकायत दर्ज की.

वह मुझे आपको बताने की जिम्मेदारी देकर गयी है कि आप उसको अच्छे लगे, परन्तु उसके आकर्षण में कोई वासना नहीं थी यद्यपि उसका पति अच्छा व्यक्ति नहीं था .वह तुम्हारा और अपना संसार नहीं तोड़ना चाहती थी, मैंने पहले ही बताया था.वह मीरा की तरह प्रेम दीवानी थी. अपनी सीमा का उसे ज्ञान था. उसे आपके मिजाज़ से प्रेम था, आपके व्यक्तित्व से प्रेम था.  वह आपको ठीक देखना चाहती थी, उस पुरुष को जिसे उसने ह्रदय से चाहा, शरीर के लिए नहीं, अपनी आत्मा के लिए. तभी वह आपके निकट नहीं आई थी. परन्तु जाते -जाते मुझे कह गयी की आपको यह बता दे कि घूमना नियमित रूप से चालू रखे और मैं आप पर नज़र रखू कि आप रोज घूम रहे हैं या नहीं, वह यह कहकर गयी हैं.राधा मेरी प्रिय सहेली थी और रहेगी भी. मैं उसकी सबसे बड़ी राज़दार थी. हर अच्छे बुरे हालात को मुझसे जरुर बांटती थी.आज मैं भी अकेला महसूस कर रही हूँ.ऐसी सहेली का मिलना असंभव हैं वह गुणों की खान थी.आप उसे कभी मत भूलना,राजन !यह कहकर  रीना अपने आंसू पोंछती हुयी पार्क के बाहर फिर न मिलने के लिए तेजी से निकल गयी. 

मैंने बस लुटा हुआ सा भारी क़दमों से अपने घर को चल पड़ा.   


मैंने एक बार तो सोचा कि पार्क की तरफ ही ना जाये . परन्तु अगले पल ही उसने संकल्प किया कि वह धूमना जारी रखेगा.अगले दिन जब राजन पार्क में पंहुचा तो देखा कि कमल का एक फूल जो बचा था उसे भी कोई उखाड कर ले गया और उसकी नज़रें राधा को खोजने लगी. सच में कमल के फूलों से साथ-२ वह उस महिला को देखने को भी पार्क में घूमता था जो विपरीत दिशा में आती थी और पूरे  ४० मिनट तक घूमती थी. उस दिन राजन की उदासी का कोई वार-पार नहीं था. हा , राधा के कहे शब्दों का लिहाज राजन ने रखा है आज भी. राजन आज भी घूमता हैं और स्वस्थ हैं तो राधा की बदोलत.मगर राजन को एक अफ़सोस आज भी हैं कि वह राधा को उपहार नहीं दे सका यद्यपि वह राधा का सदैव उपकृत रहेगा। वह यही सोचता रहता कि हर युग में राधा का निष्काम प्रेम से क्यों जुड़ता हैं...... पता नहीं यह सिलसिला कब तक चलेगा,,,, ये तो राधा ही जानती हैं, परन्तु एक बात तो निश्चित हैं कि वह संसार के स्वार्थी दलदल में वह एक कभी न मुरझा जाने वाला कमल का फूल थी जो जीवन उपवन को सदैव सुवासित करती रहेगी. 

यह कहकर राजन ने अपनी बात समाप्त की.अब हम लोग अपने अपने घर को मुद रहे थे, परतु बार-बार मुझे रीना और राधा का विचार आ रहा था.दोनों की जीने की शैली कितनी भिन्न थी,परतु दोनों ही सही थी.।



रामकिशोर उपाध्याय 
17.8.2013


भविष्य की गारंटी


मैं जब उठता हूँ
ज़मीन पर पहले बायां पाँव धरता हूँ
वे कहते हैं कि पहले दायाँ पाँव धरो
यह हमारे ग्रंथों में लिखा है
मैं नहीं धरता
वे मुझपर वामपंथी होने का इल्ज़ाम चस्पा कर देते हैं
मैं बस चुप रह जाता हूँ
क्या कहूँ उन्हें ?
मेरी देह में दायां पाँव नहीं है
क्या वे मुझे एक अदद दायाँ पाँव देंगें ?
घर से बाहर निकलता हूँ
वो कहते हैं पहले दायीं ओर मुडो
ऐसा करने से सफलता मिलती है
मैं नहीं मुड पाता
मैं फिर भी चुप रह जाता हूँ
क्या कहूँ उन्हें ?
मेरी दुकान का रास्ता बाईं ओर होकर ही जाता है
क्या वे मुझे मेरे दाईं ओर के जंगल में
एक व्यापारिक केंद्र बनाकर देंगे ?
मैं तो चाँद की बस्ती में
एक फ़्लैट लेना चाहता हूँ
और वे ख़ुद महलों में रहकर
मुझे झौपड़ी में
रहने की उपयोगिता समझा रहे हैं
हो सकता है
वे ठीक भी हो, मान लेता हूँ
थोड़ी देर के लिए ही सही
मगर मैं जानना चाहता हूँ
कि वे मेरी ज़िंदगी को
मेरी मर्ज़ी के बिना क्यों बदलना चाहते हैं ?
किसी भामाशाह को मेरा पूरा मोहल्ला बेचकर
वे चाँद की बस्ती में मुझे एक फ़्लैट दिलवा देंगें
मेरा जंगल कटवाकर
दायीं ओर बाज़ार बनवा देंगें
और चलने को एक नक़ली पैर भी लगवा देंगें
ताकि मैं अतीत में लौट जाऊँ
अपना एक वोट देके
क्योंकि मेरा अतीत में लौट जाना ही
उनके स्वर्णिम भविष्य की गारंटी है
एक आकाशवाणी हुई
*
रामकिशोर उपाध्याय

Wednesday, 3 May 2023

Story : Return Gift

Captain of Chennai bound Air India flight announced departure from Lucknow airport. Seat belts were fastened by the passengers and window shades were kept open. Rashmi got seat number 9A near the window. Sun and moon were sighting together in the sky. As the flight started taking off to touch the desired height, her thoughts were, too, taking a flight into past with jet’s speed. Rashmi and Rajnish were born and brought up in Gulistaan Colony at Lucknow City where their bureaucrat parents lived. Both were bright and good looking. Like other young boys and girls, they, too, fell in love with each other. Obviously, in the matter of heart, who waits for the permission of the world? Rashmi was recalling every moment spent in the company of Rajnish right from her first to the last meeting.
“Rashmi, I tried my best, but my parents did not agree. I will not remain happy , if I marry you against their wishes. I am sorry, Rashmi. I know that I have broken your heart. I am not a good man. Please forgive me. My parents have selected an IAS officer, two batch junior to me, and will marry her this month only.”
Hearing these heart piercing words, tears rolled down on her cheeks and nose also started running. She was crying incessantly, when she left the restaurant. Her handkerchief was drenched with tears. The pain was unsurmountable and no remedy was seen. She had lost the bait of her life. The cruel destiny was laughing loud at her. Knowing the parents’ wrath against this broken relationship, she was in dilemma to go home. Her legs were shaking. Cheated in love, Rashmi reached home late in the night anyhow. She fainted and fell in the bed like an oak tree.
Rashmi did not expect such a return gift from Rajnish for her unflinching love. Hell broke loose on her. She was entering into 35th years of her age and had already lost the prime of her youth. Could he return those ten precious years of her life spent in his wait ? What could be a worse tragedy than that ? Waiting for ringing marriage bells finally ended in eternal wait and broken heart . Such depressing thoughts were taking heavy toll on her health. One night she tried to commit suicide, but some invisible power stopped her. One day when her mother asked about the grief peeping from her eyes, Rashmi burst in the lap of her mother like a cloud in the valley. There was heavy rain inside her as well, the rain of shattered emotions and promise. Rashmi began to dance in agony . Her parents, too, realized her suffering without uttering a single word . After almost one year, she forgot Rajnish completely, yet could not erase his last words from her memory.
“Shouldn’t Rajnish have asked his parents before falling in love with her? Had he any right to spoil her life? Love might have different meaning for a man and woman. But love is not a weak thread which could be broken by a stroke of words. Love is the everlasting bond between two loving people in this world and, some say in the other world also. But why this did not happen to her?”
She was bogged down with such agonising questions. Captain of the flight announced the arrival. The Aeroplan stopped with a thud on air-strip. The string of grief laden memory was, too, broken similarly. She looked again out of window. Seeing that only sun was shining bright the sky of Chennai, Rashmi just smiled.
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Ram Kishore Upadhyay

Tuesday, 22 November 2022

तिश्नगी

तिश्नगी इतनी थी

कई समंदर पी गए,फिर न बुझी

लौ फिर ऐसी लगी

कि अगन लगाए से भी न लगी
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रामकिशोर उपाध्याय

Sunday, 31 July 2022

विचार प्रवाह : जीवन-संध्या का मुकाबला ********

सांझ के धुंधलके में कुछ साफ नहीं दिखाई देता और वस्तुओं को ठीक -ठीक देखने के लिये आदमी  या तो  आंखों को मलता है या फिर ऐनक को  ऊपर नीच करता है या बार- बार उसके लेंस  साफ करता है।विज्ञान के अनुसार यह प्रकाश की अल्पता के कारण होता है। वस्तुएं तो अंधेरा हो या उजाला हो, एक जैसी ही रहती हैं । ठीक वैसा  ही आलम ज़िंदगी की शाम का भी होता है और यह धुंधलका  उस समय और गहराने लगता है जब आपका साथ आपका ही जीवन- साथी छोड़ जाए।

जैसे वृक्ष की लम्बी तगड़ी जड़ें उसे मरने नहीं देती, वैसे ही  आदमी के जीवन का प्रकाश उसका परिवार होता है जो उसे संध्या बेला में जीने का सहारा दे भी सकता है और छीन भी सकता  है। मनुष्य को एक जीवन उसके विचार भी देते हैं । वृक्ष की नियति तो स्थावर बने रहने की है,लेकिन मनुष्य की नियति तो जंगम है। उसे तो नदी की तरह प्रवाहमान रहना है। जब वृक्ष अपनी जड़ों की लंबाई बढ़ाकर जल-प्रवाह को तलाश लेते हैं और अपनी जाइलेम और फ्लोएम को साल दर साल जिंदा रखते हैं तो मनुष्य भी क्यों न अपने विचारों को विस्तारित करके जीने के लिये  आवश्यक पोषण प्राप्त करे ? यह अधिकांश लोगों के साथ होता है  कि विभिन्न स्पष्ट या अस्पष्ट कारणों से परिवार अक्सर सांध्य बेला में  साथ छोड़ देता है ,तब आपके विचार और सोच ही जीने का हौसला देते हैं। वर्तमान परिस्थितियों का मुकाबला उनके प्रति  दृष्टिकोण को बदलकर और नकारात्मकता को हटाकर ही किया जा सकता है।  वैसे  बूढ़े वृक्ष पर तो न तो परिन्दें बैठते हैं और फल- फूल न आने की वजह से न मधुमक्खियां आती हैं और न ही भँवरे डोलते हैं और न ही तितलियां उस पर मंडराती हैं। यह प्रकृति का नियम है।अतः इस सत्य को स्वीकारते हुए कि सुबह के बाद शाम तो आनी ही है, चिंता छोड़कर  चिन्तनशील बने रहें ।

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रामकिशोर उपाध्याय