Monday, 18 July 2016

क्या कभी वटवृक्ष ......


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दर्द में बिलकुल न झुके
आस में तनकर खड़े
विश्वास में चुप-चुप दिखे
क्या तुम कभी पिता थे .................
*
भार से झुककर चले
धर्य में डटकर खड़े
प्यार में पल- पल बहे
क्या तुम कभी माँ थे ........................
*
धूप में सीधे खड़े
साँझ को नीचे झुके
वर्षा में टप-टप झरे
तुम क्या कभी वटवृक्ष थे .......................
*
रामकिशोर उपाध्याय

Friday, 8 July 2016

पुराना गाँव

नया  दर्द  है
मौसम फिर से सर्द है
मिलती  नही अब अलाव -ठाँव है
तने खड़े हैं तरुवर  लेकर  अपनी कृष काया
ढूंढ रहें हैं खोई अपनी गहरी छाया
उधर
शहर में कोई  खोजता वही पुराना गाँव है ....
*
रामकिशोर उपाध्याय 

पुराना गाँव

नया  दर्द  है
मौसम फिर से सर्द है
मिलती  नही अब अलाव -ठाँव है
तने खड़े हैं तरुवर  लेकर  अपनी कृष काया
ढूंढ रहें हैं खोई अपनी गहरी छाया
उधर
शहर में कोई  खोजता वही पुराना गाँव है ....
*
रामकिशोर उपाध्याय 

दुनियां

नई  धूप  है
नई  छाँव  है
नए पेड़  पर  नई कोंपल है
मेघ भी लेकर  आते  नया जल  है
मगर
रिश्तों की  दुनियां में फिर वही काँव -काँव है ..............
*
रामकिशोर  उपाध्याय